
साल भर से खुद ही ‘‘अनाथ‘‘ है बाल अधिकार संरक्षण आयोग
- 16 नवम्बर 2024 को आयोग का कार्यकाल हो चुका है समाप्त
- बाल कल्याण समिति और किशोर न्याय बोर्ड का भी जून 2024 को कार्यकाल हो चुका है समाप्त
- चयन समिति भी हो चुकी हैं भंग
संतोष कुमार सिंह
लखनऊ । आज बाल दिवस है। देशभर में पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती पर बच्चों के हक, हंसी और भविष्य की बातें होंगी। लेकिन उत्तर प्रदेश के 1.68 करोड़ बच्चों का वैधानिक संरक्षक राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग 16 नवम्बर 2024 से अनाथ है। इनता ही नहीं जनपद स्तर पर गठित बाल कल्याण समिति और किशोर कल्याण बोर्ड का कार्यकाल जून 2024 से ही समाप्त हो गया है। लेकिन जिम्मेदार हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। नई नियुक्ति अभी तक नहीं हुई।
उत्तर प्रदेश में बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन वर्ष 2015 में हुआ था। यह वैधानिक निकाय बच्चों के अधिकारों की निगरानी, कानूनों का क्रियान्वयन, शिकायत निवारण और केंद्र को वार्षिक रिपोर्ट देने के लिए जिम्मेदार होता है। आयोग में एक अध्यक्ष और छः सदस्यों की नियुक्ति बाल एवं महिला कल्याण विभाग द्वारा की जाती है। 17 नवम्बर 2021 से शुरु हुआ आयोग का तीसरा कार्यकाल 16 नवम्बर 2024 को समाप्त हो गया है। आयोग के तीसरे कार्यकाल में अध्यक्ष के पद पर डॉ0 देवेन्द्र शर्मा और छः सदस्यों में क्रमशः डॉ0 सुचिता चतुर्वेदी, अमिता अग्रवाल, श्याम त्रिपाठी, निर्मला पटेल, इं0 अशोक यादव व आशु दिवाकर को 17 नवम्बर 2021 को नियुक्त किया गया था। जिनका कार्यकाल 16 नवम्बर 2024 को समाप्त हो चुका है। बीते साल भर से बाल श्रम, बाल विवाह, स्कूल ड्रॉपआउट, यौन शोषण और बाल संरक्षण जैसे हजारों मामलों में हस्तक्षेप करने वाला कोई नहीं है। यानि राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग बीते साल भर से खूद ही अनाथ है। बाल आयोग की एक पूर्व सदस्य ने बताया कि प्रदेश में बाल अधिकार संरक्षण आयोग, और जनपद स्तर पर बाल कल्याण समिति व किशोर न्याय बोर्ड में कूल 525 लोगों की नियुक्ति होती है। इसके लिए एक चयन समिति का गठन किया गया था। इस चयन समिति में आयोग से एक सदस्य का होना अनिवार्य है। लेकिन आयोग का कार्यकाल समाप्त होने के कारण यह समिति भी भंग हो गई है। विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि नई नियुक्ति के लिए प्रस्ताव पहले ही भेजा गया था, लेकिन जिम्मेदार विभाग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। अब कार्यकाल समाप्त होने के बाद आयोग की सारी शक्तियां निलंबित हो गई हैं। बाल संरक्षण को लेकर काम करने वाली एक संस्था के जिम्मेदार अधिकारी कहते हैं कि आयोग का कार्यकाल समाप्त होना बच्चों के अधिकारों पर सीधा हमला है। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट जैसे कानूनों की निगरानी कौन करेगा? यह संवैधानिक संकट है।





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