
जनजातीय कलाओं ने सजाई लोक कला-संस्कृति की अनुपम छटा
- आईजीपी में छः दिवसीय जनजाति भागीदारी उत्सव का रंगारंग शुभारंभ
संतोष कुमार सिंह
लखनऊ । बिरसा मुण्डा की 150वीं जयंती पर राजधानी के गोमती नगर स्थित इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में जनजाति भागीदारी उत्सव का रंगारंग शुभारंभ हुआ। शाम को मंच पर प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रम में जनजातीय कलाओं ने अपनी लोक कला और संस्कृति को प्रदर्शित किया। यहां विभिन्न जनपदों और राज्यों की आर्ट एण्ड क्राफ्ट और हस्तशिल्प उत्पादों की प्रर्दशनी भी लगी है। छः दिवसीय यह उत्सव 18 नवम्बर तक चलेगा। मंच पर देश के विभिन्न राज्यों के जनजातीय कलाकार अपनी पारंपरिक लोक कला, नृत्य और संगीत के माध्यम से आदिवासी संस्कृति की समृद्ध विरासत को जीवंत किया।
सोनभद्र के अमरजीत सिंह और टीम ने मादल वाद्य यंत्र से घसिया जनजाति की संस्कृति को प्रस्तुत किया। मादल की गूंज में घसिया समुदाय की ऊर्जा और जीवन शैली झलकी। वहीं रजनीश सिंह (पीलीभीत, थारू जनजाति) ने झिझी नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति दी, जिसमें प्रकृति और कृषि जीवन की सुंदरता उभरी। असम डिब्रूगढ़ की स्वागता शर्मा व टीम ने बरदोईशीखला नृत्य प्रस्तुत किया। रंग-बिरंगे परिधान और बांस की टोकरियों से सजा यह नृत्य असमिया जनजातियों की एकता का प्रतीक बना। छत्तीसगढ़ से रूप राय नेताम ने मांदरी नृत्य के जरिए गोंड जनजाति की मिट्टी से जुड़ी परंपराओं को मंच पर उतारा।
राजस्थान के भंवर खान लंगा ने लंगा धुन और मांगणिहार गायन से मरुस्थल की लोककथाओं को स्वर दिया। कार्यक्रम के संयोजक व उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति कला संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी ने बताया कि यह उत्सव न केवल जनजातीय कलाओं को राष्ट्रीय मंच दे रहा है, बल्कि बिरसा मुण्डा के स्वाभिमान और अधिकारों के संघर्ष को नई पीढ़ी तक पहुंचा रहा है।





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