
भक्ति और संतों की शरण में ही है मुक्ति!
- मुक्ति का उपाय पाने के लिए संतों की शरण में चले गए थे राजा परीक्षित: रजनीशाचार्य
- छोहरिया माता मंदिर में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा का दूसरा दिन
संतोष कुमार सिंह
लखनऊ । चिनहट स्थित छोहरिया माता मंदिर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दौरान बुधवार को कथा व्यास रजनीशाचार्य जी महाराज ने बताया कि मुक्ति का उपाय पाने के लिए राजा परीक्षित संतों की शरण में चले गए थे। उन्होंने कहा कि जब मनुष्य जीवन के अंतिम क्षणों में परमात्मा की शरण को प्राप्त करता है, तभी उसका उद्धार संभव होता है। संतों की संगति और भगवान के नाम का स्मरण ही जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति का एकमात्र मार्ग है।
व्यास ने कहा कि राजा परीक्षित ने जब यह जाना कि उन्हें सातवें दिन मृत्यु का श्राप मिला है, तब उन्होंने सांसारिक मोह से विरक्त होकर अपनी पूरी चेतना श्रीहरि के चरणों में समर्पित कर दी। उनके इस त्याग और श्रद्धा से ही उन्हें परम मुक्ति प्राप्त हुई। कथा के दौरान भक्तों ने जय श्रीकृष्ण और हरि नाम संकीर्तन के साथ वातावरण को भक्तिमय बना दिया। मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु कथा श्रवण के लिए उपस्थित रहे। कथा के दौरान रजनीशाचार्य जी महाराज ने भागवत के सातवें और आठवें स्कंध से उदाहरण प्रस्तुत करते हुए समझाया कि जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक सुख प्राप्त करना नहीं, बल्कि आत्मकल्याण की साधना करना है। उन्होंने कहा कि जैसे राजा परीक्षित ने सांसारिक प्रलोभनों को त्याग दिया था, वैसे ही हर व्यक्ति को ईश्वर-स्मरण और सदाचार के पथ को अपनाना चाहिए।





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