
विश्व हीमोफीलिया दिवस: जानिए क्या है हीमोफीलिया रोग, जानिए हेल्दी रहने के टिप्स
लखनऊ। हीमोफीलिया बीमारी को लेकर लोग जागरूक हों, इसके लिए 17 अप्रैल को विश्व होमोफीलिया दिवस मनाया जाता है। हीमोफीलिया एक दुर्लभ बीमारी है कई बार इस बीमारी की जानकारी नहीं होने से गंभीर खतरा होता है इस बीमारी में शरीर में ब्लड कॉटिंग होती है इस वजह से चोट लगने पर बल्ड बहना रुकता नहीं है और गंभीर स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
यह रोग अक्सर पुरुषों में पाया जाता है लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि महिलाएं इससे अछूती हैं। हीमोफीलिया महिलाओं में होने का आंकड़ा पुरुष की तुलना में कम है महिलाओं का यह आंकड़ा बढ़े नहीं इसके लिए इस बार विश्व हीमोफीलिया दिवस 2025 का विषय भी महिलाओं को देखते हुए रखा गया है इस समस्या से बचने के लिए आपको हेल्दी लाइफस्टाइल और खानपान अपनाने चाहिए जो हेल्दी बनाता है।
जानिए क्या है हीमोफीलिया रोग
महिलाएं ब्लिडिंग को नजरअंदाज नहीं करें: किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) की डॉ. स्वास्तिका सिन्हा ने बताया कि इस बार का विषय 'सभी के लिए पहुंच: महिलाओं और लड़कियों को भी होता है रक्तस्राव' रखा गया है इस विषय का मतलब है कि हीमोफीलिया संबंधित सेवाओं तक सभी की पहुंच हो। हीमोफीलिया के अलावा भी बहुत सी ऐसी बीमारियां हैं जिनमें रक्तस्राव होता है महिलाओं और लड़कियों को रक्तस्राव को अनदेखा नहीं करना चाहिए और इसकी जांच करानी बहुत जरूरी है।
डॉ. स्वास्तिका सिन्हा ने बताया कि हर 5000 लोगों में से एक व्यक्ति हीमोफीलिया से ग्रसित होता है अमूमन सामान्य व्यक्ति में चोट लगने के दो से तीन मिनट बाद ब्लीडिंग अपने आप रुक जाती है, लेकिन हीमोफीलिया में ऐसा नहीं होता है इसके पीछे प्लेटलेट्स और क्लॉटिंग फैक्टर्स जिम्मेदार होते हैं।
क्रोमोसोम की गड़बड़ी से होती है बीमारी: क्लॉटिंग फैक्टर्स आठ और नौ की कमी को हीमोफीलिया कहा जाता है जिसके कारण चोट लगने के बाद ब्लीडिंग लम्बे समय तक होती है कभी-कभी यह ब्लीडिंग बिना चोट लगे भी होती है यह बीमारी “X” क्रोमोसोम की गड़बड़ी के कारण होती है और पुरुषों में एक “X” क्रोमोसोम की कॉपी होती है, इसलिए यह बीमारी अधिकतर पुरुषों में ही देखने को मिलती है।
उन्होंने बताया कि इसके लक्षण बचपन में ही दिखाई देते हैं जन्मजात बीमारियां माता-पिता से ही बच्चों में जाती हैं माता-पिता के जींस में कुछ गड़बड़ी होगी, तभी वह बीमारी बच्चों में जाएगी।हीमोफीलिया ऐसी अनुवांशिक बीमारी है जो जेंडर लिंक्ड है यानी जेंडर बीमारी को प्रभावित करता है महिलाओं में लक्षण न के बराबर होते हैं जबकि, मां के परिवार यानी मामा और नाना में इसके लक्षण स्पष्ट दिखाई देंगे।
डॉ. स्वास्तिका सिन्हा बतातीं हैं कि अगर माता-पिता में पिता हीमोफीलिया से ग्रसित है और मां वाहक है तो यदि बच्चा लड़का है तो उसमें हीमोफीलिया होने की 50 फीसद गुंजाइश होती है इसलिए गर्भावस्था के दौरान जब भी जांच कराएं तो डॉक्टर को जरूर बताएं कि उनके पिता या भाई को हीमोफीलिया है या नहीं इसकी जांच आज के समय में कॉमन नहीं है इसके लिए जेनेटिक जांचों की जरूरत होती है इसलिए महिला से उसके परिवार की हिस्ट्री जानकर बीमारी का पता लगाया जाता है।
हीमोफीलिया के लक्षण
जानिए क्या है इलाज: उन्होंने बताया कि प्राथमिक इलाज में सबसे पहले जहां से रक्तस्राव हो रहा है, उस हिस्से को जोर से दबाएं जोर से दबाने से रक्तस्राव कुछ कम होगा यदि आधे घंटे तक दबा के रखते हैं तो माइनर हीमोफीलिया में रक्तस्राव बंद हो जाता है। गंभीर स्थिति में दबाने से रक्तस्राव नहीं रुकता है अस्पताल जाने की जरूरत पड़ती है कई बार ऐसा होता है कि बच्चे को एक साल की उम्र से रक्तस्राव हो रहा है लेकिन, परिवारवाले अनदेखा कर देते हैं और उसकी आयु आठ-दस साल हो जाती है ऐसे में स्थिति खराब हो जाती है।
केजीएमयू के डॉ. अरित्रा शर्मा बताते हैं कि हीमोफीलिया में सबसे खराब चीज यह होती है कि जोड़ों में रक्तस्राव होता है और धीरे-धीरे करके जोड़ खराब हो जाते हैं कभी-कभी तो स्थाई तौर पर खराब हो जाते हैं समय से पता चलने पर क्लॉटिंग फैक्टर मुहैया कराएं जा सकते हैं।
हीमोफीलिया ग्रसित भी जी सकते हैं सामान्य जीवन: उन्होंने कहा कि यदि सावधानी बरतें और सही से फैक्टर लेते रहें तो हीमोफीलिया ग्रसित व्यक्ति भी स्वस्थ व्यक्ति की तरह सामान्य जीवन जी सकते हैं हीमोफीलिया में सबसे बड़ी मुश्किल जोड़ों की होती है हीमोफीलिया ग्रसित लोगों को अपने को चोट से बचाना चाहिए हीमोफीलिया मरीज अपने पास एक आईडी रखें जिसमें यह जानकारी हो कि आप हीमोफीलिया ग्रसित हैं जिससे कि दुर्घटना के समय विशेष ध्यान दिया जा सके।
उन्होंने कहा कि हीमोफीलिया का अन्य बीमारियों जैसे डायबिटीज, हाइपरटेंशन से कोई सम्बन्ध नहीं है इसकी दवाएं मरीज बेशक ले सकते हैं लेकिन, ऐसी दवाएं जो ब्लड को पतला करने की होती हैं उन दवाओं के सेवन से पहले डॉक्टर को जानकारी अवश्य दें।
जेनेटिक बीमारी है हीमोफीलिया: हीमोफीलिया सेंटर की फिजियोथैरेपिस्ट गीता बतातीं है कि हीमोफिलिया रक्तस्राव की एक आनुवांशिक बीमारी है, जो रक्त के थक्के बनाने के लिए जरूरी कुछ कारकों की कमी के कारण होता है, जो सामान्य रूप से रक्त का थक्का बनाने के लिए जरूरी होते हैं हीमोफीलिया ए, स्कंदन कारक VIII के घटे हुए स्तर और हीमोफिलिया बी कारक IX के घटे हुए स्तर के कारण होता है।
उन्होंने कहा कि इस बीमारी का सही डायग्नोज होना सबसे ज्यादा अहम है। आमतौर पर जब जोड़ों में रक्तस्राव होता है तो जोड़ बहुत सूज जाते हैं ऐसे में मरीज परेशान होकर किसी अस्पताल जाते है वहां डॉक्टर इसकी गंभीरता को समझ नहीं पाते हैं कई बार मरीज का ऑपरेशन तक कर देते हैं क्योंकि, डॉक्टर को लगता है कि शायद जोड़ में चोट के कारण मवाद भरा होगा। ऑपरेशन के जरिए उसे हटाने की कोशिश करते हैं लेकिन, जब ऑपरेशन करते हैं तो मरीज को रक्त स्रावशुरू होता है वह रुकने का नाम नहीं लेता ऐसे मरीजों के लिए सबसे बड़ी समस्या है सही डायग्नोज का होना है।
हीमोफीलिया को जानें
थेरेपी भी है इलाज: उन्होंने कहा कि हीमोफीलिया केंद्र में ऐसे मरीजों के लिए थेरेपी की व्यवस्था की गई है, क्योंकि ऐसे मरीज अकेले एक्सरसाइज नहीं कर पाते हैं उन्हें दिक्कत होती है एक गाइडर की जरूरत होती है यहां पर मरीज को भर्ती किया जाता है और उसकी थेरेपी कराई जाती है। मरीज की बीमारी को देखते हुए मरीज की थेरेपी की जाती है लेकिन यहां पर कुछ और इक्विपमेंट की आवश्यकता है थेरेपी के लिए कुछ अन्य इक्विपमेंट अगर सरकार की तरफ से मिल जाते तो इन मरीजों के लिए और भी बेहतर हो जाता।
सरकार की तरफ से निशुल्क इलाज: उन्होंने बताया कि प्रदेश में कई ऐसे हीमोफीलिया केंद्र है जहां पर मरीजों का फ्री में इलाज चल रहा है ऐसे मरीजों को फैक्टर की आवश्यकता होती है क्योंकि इन मरीजों में रक्तस्राव काफी होता है अगर उन्हें हल्की सी चोट भी लग जाती है तो भी रक्त बिना रुके बहता जाता है इस स्थिति में उन्हें फैक्टर इंजेक्शन की जरूरत पड़ती है बाहर इन इंजेक्शन की कीमत काफी ज्यादा है हीमोफीलिया केंद्र में प्रदेश सरकार की ओर से निशुल्क इलाज उपलब्ध है।
बाराबंकी से केजीएमयू हीमोफीलिया केंद्र में इलाज करने के लिए आए शिवकुमार ने कहा कि बहुत छोटा था उसा समय हीमोफीलिया बीमारी के बारे में पता चला तब से इस बीमारी से लड़ रहा हूं। जिला अस्पतालों के डॉक्टरों ने कहा था कि इस बीमारी का इलाज बहुत महंगा है जिसके कारण कभी इस बीमारी के इलाज के बारे में नहीं सोचा था।
धीरे-धीरे अब यह बीमारी बहुत ज्यादा बढ़ गई है और आज के समय में इस बीमारी का इलाज प्रदेश सरकार कर रही है हीमोफीलिया केंद्र खुल गए हैं यहां पर प्रदेश सरकार के द्वारा निशुल्क इलाज होता है, जो इंजेक्शन बाहर पांच हजार से डेढ़ लाख रुपये तक की है वह इंजेक्शन हमें यहां पर निशुल्क लगती है।
बिहार से अपने बच्चे का इलाज कराने आई पिंकी शर्मा ने कहा कि बेटे की उम्र इस समय 8 साल की है पैदा होने के बाद पता चला कि बच्चे को हीमोफीलिया नाम की बीमारी है जब छोटा था उस समय बहुत दिक्कत नहीं होती थी लेकिन, जैसे-जैसे उम्र बढ़ रही है दिक्कत बढ़ती जा रही है पहले साल में दो बार सेक्टर 8 इंजेक्शन लगवानी पड़ती थी लेकिन, अब महीने में 15-20 इंजेक्शन लगवानी पड़ती है।
हरदोई के रहने वाले वैभव पिछले कुछ सालों से लगातार हीमोफीलिया केंद्र में अपना इलाज कर रहे हैं। 9वीं में पढ़ने वाले वैभव ने कहा कि इस बीमारी के चलते काफी दिक्कत होती है हम दूसरे बच्चों की तरह खेल कूद नहीं सकते, साइकिल नहीं चला सकते क्योंकि, हमें हल्की सी चोट लगने पर भी रक्तस्राव होने लगता है जोड़ों में रक्त भर जाता है ऑनलाइन क्लास चलती है घर पर ही पढ़ाई करते हैं घर पर चारों लूडो बैठकर खेलते हैं।
अगर जोड़ों के अन्दर रक्तस्राव होता है तो क्या करें?
जोड़ के अन्दर रक्तस्राव के कारण दर्द, सूजन और चलने में परेशानी होगी।
रक्तस्राव व क्षति की मात्रा को सीमित करने के लिए जितना जल्दी हो सके प्राथमिक चिकित्सा (प्राइस) दें हालांकि, प्राइस को स्कंदन कारक को बदल देना जो अंतिम थेरेपी है, का विकल्प कभी नहीं बनाया जाना चाहिए।
फिजियोथेरेपी व पुनर्वासन से मस्कुलोस्केलेटल फंक्शन और रिकवरी में सुधार होता है फिजियोथेरेपी जल्द से जल्द शुरू करना चाहिए और मांसपेशियों की पूरी लंबाई, शक्ति और कार्य को बहाल करने के लिए धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
हीमोफीलिया रोगियों के इलाज को लेकर सरकार संवेदनशील और सजग है। प्रदेश में हीमोफीलिया के लगभग 7,000 मरीज और राम मनोहर लोहिया चिकित्सा संस्थान, केजीएमयू, एसजीपीजीआई सहित कुल 26 हीमोफीलिया केयर सेंटर हैं यहां पर 24 घंटे सेवाएं उपलब्ध रहती हैं इन केंद्र पर हीमोफीलिया ग्रसित मरीजों को निशुल्क क्लॉटिंग फैक्टर उपलब्ध कराएं जाते हैं इसके लिए लाभार्थी को हीमोफीलिया सेंटर में पंजीकरण कराना होता है. जिससे कि उनका कार्ड बन जाता है।
जानते हैं प्राइस (PRICE) क्या है?
P-Protection सुरक्षा (पट्टी): प्रभावित जोड़ को एक पट्टी के साथ सुरक्षित किया जाना चाहिए ताकि, चोटिल जोड़ को अस्थाई रूप से स्थिर किया जा सके यह जोड़ को आराम देने में मदद करता है और चोटिल हाथ के इस्तेमाल को या चोटिल पैर पर वजन डालने से रोकता है।
R-Rest आराम: रक्तस्राव के बाद और इसे ठीक होने तक प्रभावित अंग को आराम दें यदि कोहनी या कंधे के जोड़ से रक्तस्राव हो रहा है, तो हाथ को आराम दें इसे इधर-उधर न करें और चीजों को उठाने या ले जाने के लिए इसका इस्तेमाल न करें यदि पैर के जोड़ या मांसपेशियों में रक्तस्राव है, तो खड़े न रहें या न चलें यहां स्लिंग और पट्टियां मदद कर सकती हैं जोड़ को तब तक आराम दिया चाहिए जब तक कि यह ठीक न हो जाए।
I-Ice बर्फ: बर्फ लगाने से चोट में होने वाला दर्द और मांसपेशियों की सूजन कम हो सकती है बर्फ सूजन और लालिमा को कम करने में भी मदद करता है, जिसे जलन भी कहा जाता है। बर्फ लगाने के कई अलग-अलग तरीके हैं, लेकिन यह बहुत महत्वपूर्ण है कि बहुत लंबे समय तक बर्फ नहीं लगाना है अगर फायदा होता है तो दर्द से राहत के लिए हर चार से छह घंटे में 15-20 मिनट के लिए बर्फ कोल्ड पैक को जोड़ पर लगाना चाहिए।
C-Compression दबाव: रक्तस्राव वाले जोड़ को एक टेंसर पट्टी या लोचदार स्टॉकिंग के साथ लपेटें यह सूजन को सीमित करने में मदद करता है और इसे अंग के अन्य भागों में फैलने से रोकता है चोटिल जोड़ या मांसपेशी को ठीक नीचे से और रक्तस्राव की जगह से ठीक ऊपर तक क्रिस-क्रॉस पैटर्न में लपेटें ध्यान रखें कि 'टरक्नीकेट' प्रभाव से बचने के लिए अंग को बहुत अधिक टाइट न लपेटें, जिससे रक्त का संचार रुक जाए।
E-Elevation ऊपर उठाना: रक्तचाप को कम करने और रक्तस्राव को धीमा करने में मदद करने के लिए चोटिल हाथ या पैर को हृदय से ऊपर के स्तर तक (उदाहरण के लिए, मसनद या तकिए के द्वारा) उठाएं ऊंचाई भी एक चोटिल अंग के साथ सूजन के "ट्रैकिंग" को कम करने में भी मदद करता है।
हीमोफीलिया के महज दो फीसदी बच्चे ही पहुंच पाते हैं कॉलेज: पीजीआई में हुई एक स्टडी में सामने आया है कि इस बीमारी के मरीज अपनी बीमारी के कारण पढ़ाई से भी वंचित रह जाता है एक स्टडी में सामने आया है कि हीमोफीलिया के महज 10 फीसदी बच्चे ही दसवीं तक पढ़ाई कर पाते हैं 90 फीसदी उसके पहले ही स्कूल छोड़ देते हैं, जबकि दो फीसदी छात्र ही कॉलेज में दाखिला लेकर ग्रेजुएशन कर पाते हैं इसका प्रमुख कारण है मरीजों को पर्याप्त मात्रा में दवा न मिलना जिससे वह 30 साल की आयु में ही दम तोड़ देते हैं जबकि विदेशों में हीमोफीलिया के मरीजों की औसत आयु 70 साल है।
हीमोफीलिया कंट्रोल प्रोग्राम के यूपी नोडल व पीजीआई के हीमैटोलॉजी हेड डॉ. राजेश कश्यप ने बताया कि यूपी में 26 केंद्रों पर हीमोफीलिया फैक्टर के इंजेक्शन लगाए जाते हैं लेकिन अभी हम मरीजों को ऑन डिमांड ही इंजेक्शन लगाते हैं यानी किसी मरीज में जब ब्लीडिंग होती है तो ही उसे यह दी जाती है क्योंकि, दवा महंगी होने कारण सीमित संख्या में ही मिल पाती है।
मॉडीफाइड कंपाउंड के फैक्टर नई उम्मीद: डॉ. राजेश कश्यप ने बताया कि वर्तमान में जो फैक्टर-8 व फैक्टर-9 के इंजेक्शन मरीजों को दिये जाते हैं उसके मॉडीफाइड कंपाउंड की दवा भी आ गई है यह मरीजों के लिए एक नई उम्मीद क्योंकि यह ज्यादा लंबे समय तक काम करती है। वर्ममान में फैक्टर-9 सामान्य जीवन यापन के लिए सप्ताह में दो बाद देना पड़ता है जबकि मॉडीफाइड फैक्टर सिर्फ एक बार लेने से ही मरीज स्वस्थ्य रह सकता है हालांकि, यह महंगा होने के कारण सरकारी व्यवस्था में अभी निशुल्क मुहैया नहीं है लेकिन नई तकनीक आने से उम्मीद है कि मरीजों को भविष्य में ये भी सरकार की ओर से मिल सकेगा।
ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन सिस्टम से मिलेंगे सटीक आंकड़े: डॉ. राजेश कश्यप ने बताया कि वर्तमान में पांच हजार से अधिक मरीज हीमोफीलिया के यूपी में हैं लेकिन ये आंकड़े भी एकदम सटीक नहीं हैं कई मरीज एक से अधिक जिलों में भी रजिस्टर्ड होते हैं इसी को ध्यान में रखते हुए यूपी हीमोफीलिया कंट्रोल प्रोग्राम की अब नई वेबसाइट शुरू की गई है इसमें हर मरीज को एक यूनीक आईडी नंबर दिया जा रहा है इससे यूपी में मरीजों का सटीक डेटा एक दो महीने में जान सकेंगे. साथ ही एक-एक मरीज किस जिले में है और कहां इलाज करा रहा है ये सारा डेटा हमारे पर महज एक क्लिक पर होगा साथ ही मरीजों की डुप्लिकेसी भी बंद हो जाएगी जिससे दवाएं मुहैया कराना और आसान हो सकेगा।
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