
“पसमांदा समाज को सौग़ात नहीं, संविधान में हक़ चाहिए”: अनीस मंसूरी
दया शंकर चौधरी
शाहजहांपुर में पसमांदा मुस्लिम समाज के ईद मिलन समारोह में उठी अधिकारों की बुलंद आवाज़, वक्फ -अधिनियम ‘उम्मीद’ को बताया पसमांदा विरोधी क़दम
शाहजहांपुर। पसमांदा मुस्लिम समाज को अब ‘सौग़ात’ की नहीं, संविधान में सुनिश्चित हक़ और सम्मानजनक हिस्सेदारी की दरकार है। यह स्पष्ट और विचारोत्तेजक संदेश पसमांदा मुस्लिम समाज के संस्थापक, राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री अनीस मंसूरी ने शाहजहांपुर में आयोजित जिला स्तरीय ईद मिलन समारोह में दिया। यह भव्य आयोजन शाहजहांपुर के बीबी ज़ई हद्दफ क्षेत्र में किया गया, जिसमें भारी संख्या में पसमांदा समाज के प्रबुद्ध नागरिक, युवा, सामाजिक कार्यकर्ता और महिलाएं शामिल हुईं। कार्यक्रम की अध्यक्षता मौलाना इंक़लाब नूरी साहब (नूरी बाबा) ने की, संचालन सरताज मंसूरी ने किया और आयोजन के सूत्रधार रहे रशीद मंसूरी (ठेकेदार), जो ऑल इंडिया मंसूरी समाज के जिला अध्यक्ष हैं।
समारोह की शुरुआत सामाजिक एकता और भाईचारे की भावना के साथ हुई। मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित अनीस मंसूरी ने सबसे पहले समाज को ईद की मुबारकबाद दी और फिर अपने उद्बोधन में सरकार की पसमांदा नीतियों, वक्फ संपत्ति, सामाजिक आरक्षण और राजनैतिक छल-कपट पर विस्तार से विचार रखे।
वक्फ संशोधन अधिनियम ‘उम्मीद’ पर तीखा सवाल
जनाब मंसूरी ने कहा, “हमारे बुजुर्गों ने वक्फ की संपत्ति समाज के पिछड़े, बेसहारा, बेवा और यतीम वर्ग की भलाई के लिए छोड़ी थी। लेकिन केंद्र सरकार ने वक्फ अधिनियम में ‘उम्मीद’ के नाम पर जो संशोधन किए हैं, वे दरअसल हमारी उम्मीदों पर ही कुठाराघात हैं। यह संशोधन पसमांदा समाज को वंचित और बेदखल करने की नीति का हिस्सा है।” उन्होंने इस विषय को राजनैतिक और संवैधानिक चेतना से जोड़ते हुए कहा कि अब समाज को जागरूक होकर अपने हक़ की लड़ाई को नई दिशा देनी होगी।
'सौग़ात-ए-मोदी' पर तंज और हक़ की मांग
प्रधानमंत्री द्वारा घोषित ‘सौग़ात-ए-मोदी’ योजना का उल्लेख करते हुए अनीस मंसूरी ने कटाक्ष किया, “ईद से पहले यह सौग़ात किसे मिली, मुझे नहीं पता। लेकिन मैं यह ज़रूर जानता हूं कि पसमांदा समाज को खैरात नहीं, हक़ चाहिए। हमें भी संविधान में प्रदत्त वही अधिकार चाहिए जो दलितों को मिलते हैं। विशेषकर धारा 341(3) के तहत अनुसूचित जातियों को जो आरक्षण का लाभ दिया जाता है, वह पसमांदा मुसलमानों को भी मिलना चाहिए।”
राजनैतिक दलों को किया आगाह
जनाब मंसूरी ने तथाकथित सेक्युलर दलों को भी कठघरे में खड़ा करते हुए कहा, “ये पार्टियां 85% पसमांदा मुसलमानों के वोट से सत्ता में आती हैं, लेकिन जब उनके अधिकारों की बात आती है तो या तो चुप रहती हैं या भाजपा से हाथ मिला लेती हैं। पसमांदा समाज को अब ऐसे आस्तीन के सांपों से सावधान रहना होगा और आगामी चुनावों में उन्हें करारा जवाब देना होगा।”
संघर्ष, संगठन और 17 वर्षों की यात्रा
अपने संबोधन के अंत में जनाब अनीस मंसूरी ने संगठन की यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहा, “पिछले 17 वर्षों से मैं इस संगठन को देश के एक दर्जन से अधिक राज्यों में चला रहा हूं। यह आपकी मेहनत और समर्पण का ही परिणाम है कि आज पसमांदा समाज की गूंज देश के हर कोने तक पहुंच चुकी है। यह सिर्फ संगठन नहीं, एक आंदोलन है – हक़, पहचान और बराबरी के लिए।”
कार्यक्रम के दौरान उपस्थित लोगों ने बार-बार तालियों से उनके विचारों का समर्थन किया। कई वक्ताओं ने भी अपने संक्षिप्त विचार रखे और पसमांदा समाज को संगठित करने की दिशा में योगदान देने का संकल्प दोहराया। कार्यक्रम के अंत में सामाजिक एकता, शिक्षा, आर्थिक उत्थान, और राजनीतिक भागीदारी को लेकर कई प्रस्ताव पारित किए गए। यह स्पष्ट संकेत मिला कि पसमांदा मुस्लिम समाज अब सामाजिक न्याय की लड़ाई में और ज़्यादा संगठित, जागरूक और प्रभावशाली भूमिका निभाने के लिए तैयार है।
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