
विश्व धरोहर दिवस पर जानिए यूपी की नवाबी विरासत
लखनऊ। विश्व धरोहर दिवस हर साल 18 अप्रैल यानि आज मनाया जाता है जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाना है अगर बात उत्तर प्रदेश की हो, तो यह प्रदेश न केवल धार्मिक स्थलों के प्रसिद्ध है, बल्कि यह ऐतिहासिक धरोहरों का खजाना है। आगरा, वाराणसी, फतेहपुर सीकरी, लखनऊ, झांसी, अलीगढ़, अयोध्या, मथुरा की धरोहरें हमें एक समृद्ध इतिहास और संस्कृति से जोड़ती है आइए इस विश्व धरोहर दिवस पर यूपी की इन शानदार इमारतों की सैर करें और उनके बारे में जानें...
ताजमहल (आगरा): दुनिया के सात अजूबों में शुमार ताजमहल भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा शहर में स्थित एक विश्व प्रसिद्ध स्मारक है इसे मुगल सम्राट शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया था इसे प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। 1983 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया था ताजमहल का निर्माण लगभग 20,000 कारीगरों ने किया था मुख्य रूप से सफेद संगमरमर से निर्मित, जो राजस्थान के मकराना से मंगवाया गया था।
स्थापत्य शैली: यह इस्लामी, फारसी, तुर्की और भारतीय स्थापत्य का अनूठा संगम है इसका मुख्य गुंबद लगभग 73 मीटर ऊंचा है ताज परिसर में मुख्य मकबरा, चार मीनार, मस्जिद और गेस्ट हाउस बना है।
फतेहपुर सीकरी: बादशाह अकबर द्वारा बसाया गया यह ऐतिहासिक शहर उनकी धार्मिक और राजनीतिक दूरदर्शिता का प्रतीक है यह भी यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है।
सारनाथ (वाराणसी): यहीं बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था यहां स्थित ‘धमेख स्तूप’ और अन्य बौद्ध स्मारक धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
बड़ा इमामबाड़ा (लखनऊ): नवाब आसफ-उद-दौला ने 1784 में अकाल राहत कार्य के तहत बनवाया था यह भव्य भवन ‘भूल भुलैया’ के लिए प्रसिद्ध है। वर्ष 1784 में भूल भुलैया का निर्माण हुआ था लगभग 10 लाख रुपये की लागत से तैयार इस इमामबाड़े के निर्माण में उस समय 11 साल लगे थे यह वो दौर था जब नवाब फैजाबाद से लखनऊ आए। निर्माण और वास्तुकला की दृष्टि से भूल भुलैया अपने आप में अनोखी विरासत है भूल भुलैया बड़े इमामबड़ा का ही हिस्सा है। भूल भुलैया के अलावा आसिफी मस्जिद और बावली कुआं भी बना हुआ है इमामबाड़े में 1024 रास्तें हैं, इसमें छत तक 84 सीढ़ियां हैं, इसमें 489 दरवाजे हैं, लेकिन वापसी के लिए पहले गेट या फिर आखिरी गेट तक पहुंचने के लिए सिर्फ दो ही रस्ते हैं। इमामबाड़े के सेंट्रल हॉल में एक भी पिलर नहीं है बिना किसी सपोर्ट के यह हॉल बना है इसकी छत को खोखला रखा गया, जिससे इस पर छत और गुम्बद का भार न रहे, इस वास्तुकला के वास्तुकार का नाम कवायत उल्ला है, जब आप भूल भुलैया में जाते हैं, तो आपको 45 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं जिससे आप पहली मंजिल पर नहीं दूसरी मंजिल पर पहुंच जाते हैं।
रेजीडेंसी (लखनऊ): 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की गवाह रही यह जगह आज भी ब्रिटिश कालीन संघर्षों की याद दिलाती है रेजीडेंसी का निर्माण नवाब आसफुद्दौला के शासनकाल में हुआ था नवाब ने अंग्रेजों की सुविधा के लिए दरिया किनारे एक ऊंचे टीले पर इसे बनवाया था 1800 में नवाब सआदत अली खां के शासन में रेजीडेंसी बन कर तैयार हुई। पहले ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से नियुक्त अधिकारी इसी में रहते थे लखौरी ईंट और सुर्ख चूने से बनी इस दो मंजिला इमारत में बड़े-बड़े बरामदे और एक पोर्टिको था। रेजीडेंसी के नीचे आज भी एक बड़ा तहखाना है अवध के रेजीडेंट इस तहखाने में आराम फरमाते थे गदर के वक्त तमाम अंग्रेज महिलाओं और बच्चों ने इसी तहखाने में शरण ली थी। बकौल इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीण इसी जगह पहली जुलाई 1857 को कर्नल पामर की बेटी के पैर में गोली लगी थी।
वाराणसी के घाट: गंगा तट पर बने इन घाटों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है वाराणसी में गंगा नदी के किनारे अस्सी घाट हैं, जिसमें दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट, 80 घाट आदि प्रमुख हैं घाटों पर शाम के समय गंगा आरती होती है यहां का देव दीपावली काफी प्रसिद्ध है।
इलाहाबाद (प्रयागराज) का किला: सम्राट अकबर द्वारा बनवाया गया यह किला संगम तट पर स्थित है और ऐतिहासिक व स्थापत्य दृष्टि से अद्वितीय है। प्रयागराज दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन महाकुंभ होता है, जहां करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आकर के संगम नगरी में डुबकी लगाते हैं यह आयोजन हजारों वर्ष पुराना है, जहां धार्मिक संस्कृति विरासत धरोहर का अनूठा झलक देखने को मिलता है।
झांसी का किला: रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का प्रतीक यह किला बुंदेलखंड की शान है यह किला बुंदेलखंड क्षेत्र की रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था। 19वीं सदी के मध्य में यह झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का निवास और शासन केंद्र बना 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से मुकाबला करते हुए इसी किले से अपनी सेना का नेतृत्व किया। जब अंग्रेजों ने झांसी पर हमला किया, तो रानी लक्ष्मीबाई ने इसी किले से संघर्ष करते हुए अद्भुत साहस दिखाया यह किला रानी की अंतिम लड़ाई का गवाह बना. वह घोड़े पर सवार होकर किले की दीवार से कूद गई थीं, जो इतिहास का एक वीरतापूर्ण दृश्य माना जाता है। किला ग्रेनाइट पत्थरों से बना है और इसका निर्माण ऊंचाई पर किया गया है, जिससे दुश्मनों की गतिविधियों पर नजर रखना आसान होता था इसमें कई द्वार हैं, जिनमें महल दरवाज़ा और कौंडी दरवाज़ा प्रसिद्ध है। किले के अंदर रानी महल, शिव मंदिर, गन टावर और बारूदखाना जैसी ऐतिहासिक संरचनाएं मौजूद हैं यह किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित है हर साल मार्च में झांसी महोत्सव आयोजित किया जाता है, जिसमें बुंदेली संस्कृति और रानी लक्ष्मीबाई की गाथाओं का उत्सव मनाया जाता है।
रामनगर का किला (वाराणसी): 18वीं सदी में बना यह किला काशी नरेशों का निवास रहा है और आज भी पारंपरिक शिल्प और संग्रहालय का केंद्र है यह किला गंगा नदी के पूर्वी तट पर स्थित है किला मुगल और हिंदू वास्तुकला का सुंदर मिश्रण है इसमें लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग हुआ है, जो इसे एक भव्य और पारंपरिक रूप देता है यह किला काशी नरेशों का आधिकारिक निवास रहा है आज भी काशी नरेश का परिवार यहीं रहता है और यहां की पारंपरिक रस्में निभाई जाती हैं।
रामनगर संग्रहालय (सरस्वती भवन संग्रहालय): यहां शाही पोशाक, पालकियां, हथियार, हाथ से लिखी गईं पुस्तकें, प्राचीन घड़ियां और दुर्लभ वस्तुएं प्रदर्शित हैं ये किला रामलीला महोत्सव के लिए भी प्रसिद्ध है, जो दशहरा के समय आयोजित होता है।
अलीगढ़ का किला: मुगल काल में बना यह किला उत्तर प्रदेश की सैनिक स्थापत्य कला का एक उदाहरण है। अलीगढ़ का किला, जिसे अलीगढ़ फोर्ट या कभी-कभी रामगढ़ किला भी कहा जाता है उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक और सैनिक धरोहरों में एक प्रमुख स्थान रखता है यह किला अलीगढ़ शहर के उत्तर-पश्चिम भाग में स्थित है। यह किला मूल रूप से 1524 में इब्राहिम लोदी के शासनकाल में महमूद खान द्वारा बनवाया गया था बाद में मुगल काल में इसे और मजबूत किया गया, विशेषकर फ्रेंच सैन्य अधिकारी बेनोइट दे बोईन (Benoît de Boigne) के समय, जब इसे फ्रांसीसी शैली की रक्षा तकनीकों से सुसज्जित किया गया। 18वीं शताब्दी में यह किला मराठाओं के अधीन आया और बाद में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्जे में चला गया वर्तमान में यह किला अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अधीन है।
अयोध्या, मथुरा, काशी: ये प्राचीन नगर धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण हैं और राम, कृष्ण, शिव की उपासना स्थली हैं। अयोध्या श्री राम की जन्म भूमि है यहां राम मंदिर का निर्माण चल रहा है देश और विदेश से करोड़ों लोग राम मंदिर देखने आते हैं वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण हुआ काशी विश्वनाथ मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं महाशिवरात्रि पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
चुनार का किला (मिर्जापुर): मौर्यकाल से लेकर ब्रिटिश काल तक यह किला विभिन्न राजवंशों के शासन का केंद्र रहा है चुनार का किला (Chunar Fort), मिर्जापुर गंगा नदी के किनारे स्थित है और उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर ज़िले में आता है। चुनार का किला भारत के उन दुर्लभ किलों में से एक है जिसका इतिहास मौर्यकाल से लेकर ब्रिटिश काल तक फैला हुआ है ऐसा माना जाता है कि इस किले की नींव मौर्य सम्राट बिंदुसार या चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में पड़ी थी उस समय यह एक सैन्य छावनी और प्रशासनिक केंद्र के रूप में कार्य करता था। इस किले को सबसे अधिक प्रसिद्धि शेर शाह सूरी के शासनकाल में मिली उन्होंने इसे एक महत्वपूर्ण सैन्य अड्डे के रूप में उपयोग किया यहीं पर उनकी पत्नी की समाधि भी स्थित है, जिसे एक आकर्षक स्मारक के रूप में संरक्षित किया गया है इसमें सुरंगें, तोपों के लिए स्थान, रक्षक बुर्ज और ऊंचाई से नदी की निगरानी के लिए विशेष स्थल है किले के भीतर शेर शाह की बेगम की समाधि, सनसेट पॉइंट, हवेलियां और ब्रिटिश जेल जैसी जगहें देखने योग्य हैं। चुनार का किला आज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी है, जहां इतिहास प्रेमी, फोटोग्राफर और वास्तुकला में रुचि रखने वाले पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं।
दो साल में स्मारकों की संख्या हुई दुगनी: राज्य पुरातत्व विभाग के निदेशक रेनू त्रिवेदी ने बताया कि पुरातत्व विभाग धरोहरों की संरक्षण के लिए कई अहम योजनाएं चला रही है बीते कुछ वर्षों में कई महत्वपूर्ण स्मारकों को सुरक्षित करने का काम किया गया है पिछले दो वर्षों में राज्य पुरातत्व विभाग में स्मारकों की संख्या दुगनी हुई है। दो साल पहले 163 स्मारक राज्य पुरातत्व विभाग के अधीन थे और अब 212 स्मारक राज्य पुरातत्व के अधीन हो चुके हैं इसके अतिरिक्त 50 स्मारक और हैं जो संरक्षित के प्रक्रिया में हैं हमारा प्रयास है कि हर वर्ष 15 स्मारकों को सुरक्षित किया जाए। रेणु द्विवेदी ने बताया कि अब पर्यटक पहले से ज्यादा जागरूक हैं कई स्थानों पर ‘हेरिटेज वॉक’, वॉलंटियर प्रोग्राम्स और डिजिटल गाइड उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
पीपीपी मॉडल पर सौंपने की तैयारी: पर्यटन और सांस्कृतिक विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम ने कहा की धरोहर हमारे सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न अंग हैं इससे हम नई पीढ़ी को कई सीख देते हैं धरोहर मुर्त और अमूर्त दोनों रूप में होते हैं। मूर्ति धरोहर बिल्डिंग मंदिर संरचनाएं जिसके माध्यम से उस समय की कला संस्कृति को समझ सकते हैं भारतीय संविधान में धरोहरों को संरक्षित करने की जिम्मेदारी की व्यवस्था प्रत्येक नागरिक की है कि हम अपने धरोहर को संरक्षित करें इसे नुकसान ना पहुंचाएं पर्यटन विभाग भी धरोहरों की संरक्षित के लिए कई योजनाएं चला रहा है, जिसे पीपीपी मॉडल पर बड़ी-बड़ी कंपनियों को दे रहे हैं और उसके जरिए धरोहरों को संरक्षित किया जाएगा।
पुरातत्व विभाग के काम से संतुष्ट नहीं: वहीं लखनऊ के नवाब के वंशज नवाब मसूद अब्दुल्ला ने कहा कि उत्तर प्रदेश धरोहरों का खजाना है। ताजमहल, फतेहपुर सिकरी, सारनाथ, रामनगर का किला के साथ प्रदेश के अन्य 75 जिलों में बेहतरीन और खूबसूरत धरोहर मौजूद हैं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में नवाबों के दौर में बनाए गए बेहतरीन और खूबसूरत इमारतें आज भी मौजूद हैं, जिसे विश्व धरोहर में शामिल किया जाना चाहिए था लेकिन बदकिस्मती से पर्यटन मैप पर भी लखनऊ नहीं है उन्होंने कहा कि लखनऊ का सबसे बड़ा धरोहर बड़ा इमामबाड़ा, भूल भुलैया है। पुरातत्व विभाग और पर्यटन विभाग धरोहरों के संरक्षण के लिए जो काम कर रहे हैं उससे हम लोग संतुष्ट नहीं हैं। जी-20 कार्यक्रम के दौरान लखनऊ के बड़े इमामबाड़े को स्प्रे पेंटिंग से पेंट कर दिया गया था, रूमी दरवाजे का कलर बदल दिया गया, ऊपर लगे हुए छोटे-छोटे कंगूरे को नहीं लगाया गया लखनऊ में कई धरोहर हैं जिनको सुरक्षित करने की जरूरत है लेकिन पुरातत्व विभाग अनदेखी कर रहा है।
धरोहर को बचाने का लें संकल्प: लखनऊ के बड़ा इमामबाड़े में कोलकाता से आईं पर्यटक साक्षी ने कहा कि विश्व धरोहर दिवस पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि जहां भी धरोहर हो उनको संरक्षित किया जाए, उसे नुकसान न पहुंचा जाए, साफ-सफाई रखी जाए। मैं युवाओं से कहना चाहूंगी की धरोहर को अपनी आंखों से देखें रील और वीडियो कम देखें खुद वहां जाकर देखेंगे तो अलग आनंद मिलेगा, मैं लखनऊ आई हूं लखनऊ के धरोहरों को देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा।
सिडनी से लखनऊ देखने आईं पर्यटक अनुभूति ने बताया कि अपने धरोहरों को नुकसान ना पहुंचाएं इसे संरक्षित करने में हर संभव प्रयास करें। उत्तर प्रदेश में संस्कृति और धरोहर के लिहाज से बहुत ही बड़ा खजाना है यहां पर ताजमहल, बड़ा इमामबाड़ा, राम मंदिर मौजूद है जहां पर विश्वभर से पर्यटक आते हैं धरोहरों को संरक्षित करना प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है मैं अपनी छोटी बिटिया के साथ आई हूं और इसको उसकी महत्वता के बारे में बता रही हूं।
संरक्षित विरासतें और पर्यटन: राज्य में संरक्षित विरासत स्थलों की संख्या बढ़ने से पर्यटन में भी तेजी आई है। आगरा, वाराणसी, लखनऊ और प्रयागराज जैसे शहरों में हर साल लाखों देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं पर्यटन और संस्कृत विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश ने बताया कि 2024 में उत्तर प्रदेश में पर्यटकों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है, 2023 में पर्यटकों की संख्या 40 करोड़ थी, 2024 में पर्यटकों की संख्या 60 करोड़ हुई है इससे होटल, गाइड, ट्रांसपोर्ट जैसे क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर बने हैं। पर्यटन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में पर्यटकों की संख्या में औसतन 20% की वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई है।
Leave A Comment
Don’t worry ! Your email address will not be published. Required fields are marked (*).