
विश्व लिवर दिवस: खानपान में असावधानी से बढ़ रहीं लिवर की बीमारियां
लखनऊ। ज्यादातर बीमारियां पेट से ही शुरू होती हैं वर्तमान में बदलती जीवनशैली और खान-पान के कारण देश का हर तीसरा व्यक्ति फैटी लिवर का शिकार है इसके अलावा एंटीबायोटिक दवाओं के अनावश्यक सेवन से लिवर फेल के मामलों में भी तेजी आ रही है। विशेषज्ञ बताते हैं कि जब तक लिवर 70 प्रतिशत खराब नहीं होता है, तक तक कोई लक्षण नहीं आते हैं। 70 प्रतिशत लिवर खराब होने के बाद पेट में पानी भरना, खून की उल्टी होना और कमजोरी महसूस होता है।
केजीएमयू के गैस्ट्रोलॉजी विभाग के प्रो. सुमित रुंगटा का कहना है कि विश्व लिवर दिवस 2025 का विषय 'भोजन ही औषधि है' रखा गया है, शरीर का महत्वपूर्ण हिस्सा लिवर है। लिवर फंक्शन खराब होने से कई बीमारियां हो सकती हैं लिवर का वजन पुरुषों और महिलाओं में थोड़ा अलग होता है। पुरुषों में इसका वजन 1.8 किलोग्राम तक और महिलाओं में 1.5 किलोग्राम तक हो सकता है लिवर का वजन व्यक्ति के आकार, उम्र और स्वास्थ्य के आधार पर भी थोड़ा भिन्न हो सकता है लिवर का वजन शरीर के वजन के सापेक्ष स्थिर नहीं होता है, बल्कि व्यक्ति के शरीर के वजन के अनुपात में भी बदलता रहता है।
युवाओं में ज्यादा खतरा: प्रो. सुमित रुंगटा के मुताबिक, युवा ज्यादातर जंक फूड का सेवन करते हैं जो सेहत के लिए किसी भी तरह से उचित नहीं है इसके अलावा इन खानपान का दुष्प्रभाव शरीर के विभिन्न ऑर्गन्स पर पड़ता है एक समय के बाद छोटी-छोटी दिक्कतें बड़ी बीमारी का रूप ले लेती है ऐसे में जरूरी है कि युवाओं को अधिक जागरूक होने की जरूरत है इसके अलावा माता-पिता अपने नौनिहालों को खान-पान में सेहतमंद वाली चीज दें जंक फूड से बचपन से ही दूर रखें।
लिवर की बीमारी को समझिए: एसजीपीजीआई के गैस्ट्रोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. गौरव पाण्डेय ने बताया कि फैटी लिवर रोग तब होता है, जब लिवर कोशिकाओं में अलावा वसा जमा हो जाती है इसे मोटे तौर पर दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है। मेटाबोलिक डिसफंक्शन एसोसिएटेड स्टेटोटिक लिवर डिजीज (MASLD) और अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (AFLD)। मेटाबोलिक डिसफंक्शन एसोसिएटेड स्टेटोटिक लिवर डिजीज अधिक आम है और अक्सर मोटापे, मधुमेह और मेटाबोलिक सिंड्रोम से जुड़ा होता है जबकि, अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज अत्यधिक शराब के सेवन से जुड़ा होता है अगर इलाज न कराया जाए तो फैटी लिवर रोग और भी गंभीर स्थितियों में बदल सकता है जैसे लिवर में सूजन (स्टीटोहेपेटाइटिस), फाइब्रोसिस, सिरोसिस और यहां तक की लिवर कैंसर भी हो सकता है।
रोकथाम और प्रबंधन: डॉ. गौरव पाण्डेय ने का कहना है कि स्वस्थ आहार के जरिए फैटी लिवर की समस्या से बचा जासकता है। वर्तमान समय में अच्छा खान-पान नहीं है लोग कार्बोहाइड्रेट का सेवन अधिक कर रहे हैं नतीजा यह है कि लिवर में फैट जम जाने के कारण लीवर का फंक्शन ठीक से नहीं हो पता है ऐसे में सबसे अहम है कि फलों, सब्जियों, साबुत अनाज और लीन प्रोटीन से भरपूर संतुलित आहार पर जोर दें। संतृप्त वसा, परिष्कृत शर्करा और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन सीमित करें।
नियमित व्यायाम और वजन प्रबंधन जरूरी: डॉ. गौरव पाण्डेय के मुताबिक, दिन की शुरुआत हमेशा योग और व्यायाम से करें। प्रति सप्ताह कम से कम 150 मिनट मध्यम तीव्रता वाले व्यायाम करें, जैसे तेज चलना, साइकिल चलाना या तैराकी इत्यादि। व्यायाम करने से व्यक्ति का शरीर फिट रहता है और किसी तरह की कोई बीमारी नहीं करती है अगर किसी व्यक्ति का वजन उसकी लंबाई और उम्र के हिसाब से अधिक है तो एक व्यक्ति को कई बीमारियां अपनी गिरफ्त में ले सकती हैं मोटापा के शिकार मरीजों को ज्यादातर फैटी लिवर की शिकार होती है आहार और व्यायाम के संयोजन के माध्यम से स्वस्थ वजन बनाए रखें।
नियमित जांच कराएं, शराब से दूरी बनाएं: डॉ. गौरव पाण्डेय का कहना है कि दो या तीन महीने में एक बार हर व्यक्ति को अपनी शरीर की जांच जरूर करानी चाहिए। नियमित चिकित्सा जांच और लिवर फ़ंक्शन परीक्षण फैटी लिवर रोग का शुरुआती पता लगाने और प्रबंधन में मदद कर सकते हैं एल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज के जोखिम को कम करने के लिए शराब का सेवन कम करें या खत्म करें ज्यादातर ऐसे मरीज जो अधिक शराब सेवन करते हैं उनको लिवर से और फैटी लीवर होने की शिकायत अधिक होती है।
इसके अलावा अत्यधिक शराब के सेवन से लिवर सिरोसिस जैसी बीमारी भी हो सकती है लीवर के उचित कामकाज को बनाए रखने और अपने शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करने के लिए पूरे दिन खूब पानी पिएं। गर्मी के दिनों में काम से कम 3 से 4 लीटर पानी रोज पिएं, धूम्रपान न केवल आपके फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि लीवर के स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। धूम्रपान छोड़ने से लीवर के कामकाज सहित समग्र स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण लाभ हो सकते हैं।
डाॅक्टर की सलाह से ही दवाओं का उपयोग करें
डॉ. गौरव पाण्डेय के अनुसार ओवर-द-काउंटर दवाएं और प्रिस्क्रिप्शन दवाएं लीवर के स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकती हैं केवल निर्धारित दवाओं का उपयोग करें और स्वास्थ्य सेवा पेशेवर से परामर्श किए बिना कई दवाओं को एक साथ लेने से बचें. इस समय लोग बिना चिकित्सक के परामर्श के किसी भी प्रकार की दवा खा लेते हैं जिसके कारण मरीज को दिक्कत हो सकती है। अनावश्यक दवाओं का असर शरीर के ऑर्गन्स पर पड़ता है ज्यादातर लिवर या किडनी फेल की समस्याएं अधिक होती है। मधुमेह, उच्च रक्तचाप और उच्च कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों का उचित प्रबंधन करें क्योंकि, अगर इन्हें अनियंत्रित छोड़ दिया जाए तो ये लीवर की बीमारी में योगदान कर सकती हैं भोजन को संभालने और तैयार करने में सावधानी बरतें।
देश का हर चौथा व्यक्ति फैटी लिवर का शिकार
डॉ. मनीष टंडन ने बताया कि हाल के अध्ययनों के अनुसार फैटी लीवर रोग भारतीय आबादी के लगभग 38 प्रतिशत को प्रभावित करता है नवीन अध्ययनों के अनुसार देश में हर चौथे व्यक्ति में फैटी लिवर है। फैटी लिवर के मुख्य कारण गतिहीन जीवन शैली, जंक फूड खाना और लोगों में व्यायाम और खेल गतिविधियों की कमी है इस बात पर भी जोर दिया गया कि वसायुक्त यकृत रोग के लिए वजन कम करना और व्यायाम सबसे प्रभावी उपचार है शरीर के वजन का 5 प्रतिशत वजन कम करने से फैटी लिवर ठीक हो सकता है और अगर हम अपना 10 प्रतिशत वजन कम कर सकते हैं तो लिवर की चोट और लीवर फाइब्रोसिस भी उलट सकता है एसजीपीजीआई देश का पहला ऐसा संस्थान है जिसने लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लांट किया है और निजी अस्पतालों की तुलना में काफी कम खर्च में लिवर ट्रांसप्लांट कर रहा है।
डॉ. मनीष टंडन का कहना है कि प्रत्येक वर्ष दुनिया भर में लीवर की बीमारियों के कारण 2 मिलियन या 20 लाख से ज़्यादा मौतें होती हैं जिनमें से ज्यादातर मौतें सिरोसिस, हेपेटाइटिस, हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा और लीवर कैंसर की जटिलताओं के कारण होती हैं इन 20 लाख मौतों में से चार लाख मौतें सिर्फ़ भारत में हुई हैं। बेहतर और स्वस्थ जीवनशैली के अलावा अंगदान में मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को दूर करने की जरूरत है। राष्ट्रीय स्तर पर अंगदान के बारे में जागरूकता और वायरल हेपेटाइटिस का प्रबंधन भी इस बीमारी के प्रबंधन में महत्वपूर्ण कदम हैं।
अंगदान को तैयार नहीं लोग: डॉ. मनीष टंडन के मुताबिक, भारत देश में अंगदान को लेकर के अभी लोग जागरूक नहीं हैं अगर बात उत्तर प्रदेश की करें तो ब्रेन डेड अंगदान के मसले में उत्तर प्रदेश वर्तमान में छठवें पायदान पर है। यूपी से आगे कर्नाटक, तमिलनाडु और दिल्ली जैसे अन्य राज्य हैं, जहां पर ब्रेन डेड मरीज के परिजन अंगदान के लिए तैयार हो रहे हैं इसके अलावा जो सगे संबंधी परिजन है जिनका एक ब्लड ग्रुप है, वह अपने परिजन को अंगदान करते हैं इस मामले में चौथे स्थान में तीसरे स्थान में है। पीजीआई में हुए अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है बढ़ती मोटापे की दर और गतिहीन जीवनशैली के कारण इसका प्रचलन बढ़ रहा है।
लिवर से जुड़ी पांच बड़ी बीमारी
फैटी लिवर: यह मोटापे, मधुमेह और उच्च कोलेस्ट्रॉल के स्तर से जुड़ा हुआ है इस स्थिति में लिवर कोशिकाओं के भीतर वसा का निर्माण होता है और इसमें सूजन और फाइब्रोसिस विकसित होने की संभावना होती है।
हेपेटाइटिस: विभिन्न वायरस के कारण होने वाले संक्रमण जो लिवर में सूजन का कारण बनते हैं क्रोनिक हेपेटाइटिस अगर इलाज न किया जाए तो शरीर पर इसका लॉन्ग टर्म में नुकसान पहुंच सकता है।
हेपेटाइटिस (Hepatitis): विभिन्न वायरस के कारण होने वाले संक्रमण जो लिवर में सूजन का कारण बनते हैं क्रोनिक हेपेटाइटिस अगर इलाज न किया जाए तो शरीर पर इसका लॉन्ग टर्म में नुकसान पहुंच सकता है।
लिवर फेलियर: यह एक गंभीर स्थिति जिसमें लिवर काम करने की क्षमता खो देता है लिवर फंक्शन ठीक से काम नहीं कर पाता है जिससे मरीज की तबीयत बिगड़ने लगती है।
लिवर कैंसर: इसे आमतौर पर लिवर कैंसर के रूप में जाना जाता है और यह लगातार हेपेटाइटिस संक्रमण या सिरोसिस के परिणामस्वरूप विकसित हो सकता है।
लिवर सिरोसिस: सिरोसिस लिवर में लंबे समय तक होने वाले नुकसान के कारण पैदा होता है जो इसके कार्य को सीधे रूप से प्रभावित करता है. यह अक्सर हेपेटाइटिस या कई वर्षों तक बहुत अधिक शराब पीने के कारण होता है।
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