
होली का त्योहार, भगवान श्रीकृष्ण, लठमार होली और गाय के गोबर का महत्व
दया शंकर चौधरी
भगवान श्रीकृष्ण को गौपालक भी कहा जाता है। इसलिए होली के त्योहार पर गाय के गोबर का इस्तेमाल कई तरह से किया जाता है। गाय के गोबर को शुभ और पवित्र माना जाता है। इसलिए, होलिका दहन के दिन गोबर के उपलों का इस्तेमाल करके होलिका की प्रतिमा जलाई जाती है।
गोबर से जुड़ी मान्यताएं
मान्यता है कि गाय के हर अंग में कोई न कोई देवी-देवता विराजित हैं।
गाय के गोबर और गौमूत्र में गंगा मैय्या का स्थान माना गया है। गाय के पीछे के हिस्से को यम का स्थान माना जाता है। गाय के गोबर से वातावरण शुद्ध रहता है। गाय के गोबर के बने उपले का इस्तेमाल करने से घर में समृद्धि बनी रहती है। गाय के गोबर में औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। गायों के गोबर में कई लाभकारी सूक्ष्म जीव और बैक्टीरिया होते हैं।
होलिका दहन पर गोबर से जुड़े कुछ और तथ्य
होलिका दहन के दिन गोबर की गुलरी जलाने की परंपरा है। होलिका दहन के दिन गोबर से बनी होलिका की प्रतिमा भी जलाई जाती है। होलिका दहन की राख को घर ले जाने के लिए भी कहा जाता है।
होली पर गोबर से क्यों बनाते हैं प्रहलाद और होलिका की प्रतिमा
हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक होली को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। होली से एक रात पहले होलिका दहन करने की परंपरा है। होलिका दहन करने से पहले गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाई जाती है, आइए इसके पीछे की वजह जानते हैं।
गोबर से क्यों बनाते हैं होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा
रंगों का त्योहार होली पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। होली से पहले फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन धुलेंडी होती है तो वहीं, एक रात पहले होलिका दहन करने की परंपरा है।जिस दिन होलिका दहन होता है उस दिन आग जलाने के लिए गाय के गोबर के उपलों का प्रयोग किया जाता है और साथ ही गाय के गोबर से ही होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाई जाती है। आइए इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश करते हैं।
गोबर से क्यों बनाते हैं प्रहलाद और होलिका की प्रतिमा
हिंदू धर्म में गाय के गोबर को बहुत पवित्र माना गया है। इसी वजह से शुभ और धार्मिक कार्यों जैसे हवन, अनुष्ठान आदि में में गोबर का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा, होलिका दहन के लिए भी गोबर के उपलों का इस्तेमाल किया जाता है। मान्यता के मुताबिक गाय के पृष्ठ भाग यानि कि पीछे के हिस्से को यम का स्थान माना जाता है और गाय का गोबर इसी स्थान से मिलता है। ऐसे में होलिका दहन में इसके इस्तेमाल से कुंडली में अकाल मृत्यु जैसे या कोई भी बीमारी से जुड़े दोष दूर हो जाते हैं।
गाय में होता है देवी-देवताओं का वास
हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक, गाय में सभी देवी-देवता का वास होता है। ऐसी मान्यता है कि गाय के हर एक अंग में कोई न कोई देवी-देवताओं का वास होता है, इसलिए गाय को पूजनीय कहा जाता है। गाय के गोबर और गौमूत्र में गंगा मैय्या का स्थान भी माना जाता है। इसी वजह से गाय के गोबर को शुद्ध माना जाता है।
जब होलिका दहन के दिन अग्नि जलााई जाती है, तब गोबर से बनी होलिका की प्रतिमा भी जलने लगती है। इस आग से धुआं उठता है और गोबर का धुआं नकारात्मकता को भगाता है। इस अग्नि का धुआं मन में पैदा होने वाले अशुभ विचारों को भी दूर कर देता है और बुरी नजर को भी उतारने में भी असरदार माना गया है।
होलिका दहन का धुंआ दूर करता है कई दोष
साथ ही, ऐसी मान्यता भी है कि गोबर के जलने से जो धुआं पैदा होता है उससे वास्तु दोष और ग्रह दोष भी दूर होते हैं। इसी वजह से होलिका दहन की राख को घर ले जाने के लिए भी कहा जाता है क्योंकि होलिका दहन की राख से वास्तु से जुड़ी कैसी भी परेशानी से निजात पाई जा सकती है।
बरसाना में लठमार होली
चलिए जानते हैं कि इस साल कब खेली जाएगी बरसाना में लठमार होली, क्या है इस होली की विशेषता, कैसे हुई इस होली की शुरुआत और क्यों बरसाना में खेली जाने वाली लठमार होली के दौरान किसी को भी चोट नहीं लगती है।
कृष्ण लीला स्थली ब्रज धाम में बसंत पंचमी से ही होली का पर्व शुरू हो जाता है। कुंज की गलियों में जमकर अबीर और गुलाल उड़ाया जाता है। मंदिरों में तरह-तरह से होली खेली जाती है। यहां तक कि ब्रज में होली का अपना एक कैलेंडर भी है। आज हम प्रमुख रूप से खेली जाने वाली होली में से एक बरसाना की लठमार होली के बारे में बताने जा रहे हैं। तो चलिए जानते हैं कि इस साल कब खेली जाएगी बरसाना में लठमार होली, क्या है इस होली की विशेषता, कैसे हुई इस होली की शुरुआत और क्यों बरसाना में खेली जाने वाली लठमार होली के दौरान किसी को भी चोट नहीं लगती है।
होलिका दहन का त्योहार 13 मार्च 2025, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा। होलिका दहन पूजा का शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 26 मिनट से लेकर देर रात 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। होलाष्टक इस साल 7 मार्च से लेकर 13 मार्च तक रहेगा। इस दौरान मांगलिक कार्यों पर पाबंदी लग जाती है।
ब्रज होली 2025 कैलेंडर
07 मार्च 2025, शुक्रवार- बरसाना लड्डू होली, श्रीजी मंदिर बरसाना
08 मार्च 2025, शनिवार- बरसाना की लठमार होली, मुख्य होली बरसाना
09 मार्च 2025, रविवार- नंदभवन में लठमार होली
10 मार्च 2025, सोमवार- वृन्दावन की रंगभरनी होली व श्रीकृष्ण जन्मभूमि की होली
10 मार्च 2025, सोमवार- छड़ीमार होली, बांके बिहारी मंदिर में फूलों की होली
10 मार्च 2025, सोमवार- मथुरा श्रीकृष्ण जन्म भूमि पर हुरंगा
11 मार्च 2025, मंगलवार- द्वारिकाधीश मंदिर में होली और गोकुल के रमण रेती में होली
12 मार्च 2025, बुधवार- वृंदावन में बांकेबिहारी मंदिर में होली
13 मार्च 2025, गुरूवार- होलिका दहन
14 मार्च 2025, शुक्रवार- धुलंडी होली, बृज में द्वारकाधीश टेसू के फूलों/अबीर गुलाल की होली और रंग-बिरंगे पानी की होली
15 मार्च 2025, शनिवार- दाऊजी का हुरंगा
16 मार्च 2025, रविवार- नंदगांव का हुरंगा।
17 मार्च 2025,सोमवार: गांव जाब का परंपरागत हुरंगा
18 मार्च 2025, मंगलवार- मुखराई का चरकुला नृत्य
21 मार्च 2025, शुक्रवार- रंग पंचमी
22 मार्च 2025, शनिवार- वृन्दावन रंगनाथजी की होली
बरसाना लठमार होली 2025 कब है
पंचांग के अनुसार विक्रम संवत 2081-82 तद्नुसार सन 2025 में फाल्गुन महीने की नवमी तिथि की शुरुआत 7 मार्च को सुबह 9 बजकर 18 मिनट से होगी और इसका समापन 8 मार्च को सुबह 8 बजकर 16 मिनट पर होगा। इस प्रकार, उदयातिथि के अनुसार 8 मार्च को बरसाना में लट्ठमार होली खेली जाएगी।
बरसाना लठमार होली की विशेषता
हर साल होली के पहले मथुरा और बरसाने के गांवों में लट्ठमार होली का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है। इस उत्सव में नंदगांव के पुरुष (हुरियारे) और बरसाने की महिलाएं (हुरियारिन) भाग लेती हैं। पुरुष ढाल लेकर आते हैं, जबकि महिलाएं लाठियों से उन पर प्रहार करती हैं।
इस दौरान विशेष ब्रज गीत गाए जाते हैं और वातावरण में रंगों की छटा बिखेरी जाती है। इस खास मौके पर भांग और ठंडाई का आनंद लिया जाता है। पूरे गांव में कीर्तन मंडलियां घूमती हैं और श्री कृष्ण-राधा के भजन गाए जाते हैं, जिससे पूरा माहौल भक्ति और उल्लास से गूंज उठता है।
बरसाना लठमार होली की शुरुआत
यह परंपरा राधा और कृष्ण के प्रेम की कथा से जुड़ी हुई है। प्राचीन कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण नंदगांव में रहते थे, जबकि राधा बरसाना में थीं। एक बार, कृष्ण जी राधा से मिलने बरसाना पहुंचे और वहां उन्होंने राधा और उनकी सखियों को चिढ़ाना शुरू कर दिया।
इससे नाराज होकर राधा रानी अपनी सखियों के साथ मिलकर कृष्ण जी और ग्वालों को लाठियों से पीटने लगीं। इसी घटना के बाद से बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली की परंपरा की शुरुआत हुई। तब से यहां महिलाएं पुरुषों को लाठियों से पीटने का खेल खेलती हैं।
वहीं, दूसरी ओर पुरुष अपनी रक्षा करने की कोशिश करते हैं और इस लट्ठमार होली का भरपूर आनंद लेते हैं। इस अवसर पर रंगों के साथ-साथ फूलों की होली भी मनाई जाती है, जिससे उत्सव और भी खास बन जाता है।
बरसाना लठमार होली खेलना का तरीका
लट्ठमार होली के अवसर पर नंदगांव के युवक सिर पर साफा और कमर में फेंटा बांधकर ढाल लेकर आते हैं, जबकि बरसाने की महिलाएं अपने चेहरों को पल्लू से ढककर लाठियां चलाती हैं।
यदि किसी हुरियारे को लठ लग जाती है, तो उसे मजाक के तौर पर महिलाओं के कपड़े पहनकर नाचना पड़ता है। यह सब हंसी-मजाक और मस्ती के माहौल में होता है, जहां सभी एक दूसरे के साथ मिलकर खेलते हैं और किसी को भी चोट नहीं आती। पूरी परंपरा उल्लास और आनंद से भरी रहती है।
बरसाना लठमार होली में क्यों नहीं लगती चोट
जब श्री कृष्ण ब्रज छोड़कर जा रहे थे तब उन्होंने राधा रानी को कई वचन दिए थे। इन्हीं वचनों में से एक यह भी था कि जो भी कोई व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और प्रेम से बरसाना में लठमार होली खेलना चाहेगा या फिर लठमार होली को देखने का आनंद उठाने की इच्छा रखेगा, उसे कभी शारीरिक चोट नहीं लगेगी।
बरसाना की लठमार होली में क्या होता है
बरसाना की लठमार होली में नंदगांव से "हुरियारे" यानी कि होली खेलने के लिए पुरुष मंडली आती है और बरसाना की गोपियां यानी कि हुरियाईनें उनपर लठ से प्रहार करती हैं। इस दौरान जमकर अबीर और गुलाल उड़ाया जाता है।
बरसाने में लठमार होली राधा रानी मंदिर के पास कुंज गलियों में खेली जाती है। जब बरसाना की गोपियां और नंद गांव के ग्वाले होली खेल रहे होते हैं, उस समय उस गली में बाहरी किसी को भी होली खेलने की आज्ञा नहीं होती है।
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