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त्वरित मक्का विकास कार्यक्रम के अंतर्गत आयोजित की गई राज्य स्तरीय कार्यशाला एवं प्रदर्शनी
दया शंकर चौधरी
* मक्का की खेती बदल सकती है यूपी के किसानो की किस्मतः कृषि मंत्री
लखनऊ। त्वरित मक्का विकास कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य स्तरीय कार्यशाला एवं प्रदर्शनी-2025 का आयोजन बुधवार को गोमती नगर, स्थित एक निजी होटल में किया गया। कार्यक्रम में प्रदेश के विभिन्न जनपदों में मक्का के उत्पादन व आच्छादन पर चर्चा की गयी। मक्का को किसानों के लिए अधिक लाभदायी कैसे बनाया जाए, इस विषय पर विभिन्न तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। इस अवसर पर कृषि मंत्री, कृषि राज्यमंत्री भी उपस्थित रहे।
कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने अपने संबोधन में अवगत कराया कि प्रदेश में मक्का उत्पादन में अपार संभावनायें हैं। कृषि मंत्री ने अवगत कराया कि उत्तर प्रदेश 665 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न का उत्पादन कर रहा है एवं खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है, साथ ही उत्तर प्रदेश फलों एवं सब्जियों के मामले में भी आत्मनिर्भर है। न केवल अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हम फल एवं सब्जियां उगा रहे हैं, बल्कि उन्हें निर्यात कर अन्य की आवश्यकता पूर्ति भी कर रहे हैं। कृषि विभाग इस वर्ष अपना 150वां वर्ष भी पूरा कर रहा है। इस अवसर पर उन्हांने आह्वान किया कि इसी वर्ष सीड पार्क की योजना को अंतिम रूप प्रदान करें। गेहूँ एवं धान के बाद प्रदेश में मक्का तीसरी महत्वपूर्ण फसल है। प्रदेश में मक्का के उत्पादन में कृषकों के प्रोत्साहन हेतु 13 जनपदों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अन्तर्गत कार्यक्रम संचालित हैं तथा राज्य सहायतित योजना के रूप में त्वरित मक्का विकास कार्यक्रम पूरे प्रदेश में चलाया जा रहा है, जिसमें किसानों को बीज पर 15000 रु0 प्रति कु० की दर से अनुदान देय है। साथ ही संकर मक्का एवं देशी मक्का के साथ-साथ पॉप कॉर्न, बेबी कॉर्न तथा स्वीट कॉर्न पर भी अनुदान अनुमन्य है। पर्यटक की अधिकता वाले क्षेत्र में इनको बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जिससे कृषकों को लाभ मिलने के साथ व्यवसाय में वृद्धि हो सके। इस प्रकार मक्का उ0प्र0 के किसानों की किस्मत बदल सकता है।
कृषि मंत्री ने आह्वान किया कि एथेनॉल उद्योग से जुड़े हुए लोग मक्का के किसानों को यथावश्यक सहयोग प्रदान करें, जिससे अधिक मक्का की उपज प्राप्त हो एवं कालान्तर में एथेनॉल उद्योग को दीर्घकालीन लाभ भी प्राप्त हो सकेगा। कृषि मंत्री, सूर्यप्रताप शाही द्वारा बताया गया कि बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की जलवायु लगभग एक समान है, परन्तु बिहार में मक्का की उत्पादकता अधिक है तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में मक्का की उत्पादकता बिहार के मुकाबले कम है। इसके लिए प्रदेश के कृषकों द्वारा बिहार में मक्का की खेती करने वाले कृषकों के यहाँ भ्रमण कर उनके द्वारा प्रयोग की जाने वाली तकनीकों के बारे में जानकारी प्राप्त कर मक्का की उत्पादकता को और बढ़ा कर अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
कृषि राज्य मंत्री बलदेव सिंह औलख द्वारा मक्का के क्षेत्रफल में हुई बढ़ोतरी पर प्रकाश डाला गया तथा उन्होंने यह भी बताया कि किसानों को उनकी रुचि के अनुरूप ही मक्का की प्रजातियों के बीजों का वितरण कराया जाना चाहिए, जिससे कृषक अधिक से अधिक लाभान्वित हो सकें। उन्होंने अवगत कराया कि मक्का की फसल हेतु पानी की कम आवश्यकता होती है, मक्के का अधिक उत्पादन प्राप्त करने हेतु वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग आवश्यक है, जैसे कुंड (फरों) में मक्का लगाने से उत्पादकता में वृद्धि होती है। उन्होंने वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि किसानों के हित में तकनीक इजाद कर उसका प्रचार-प्रसार करें।
प्रमुख सचिव (कृषि) द्वारा अवगत कराया गया कि प्रदेश में करीब 1 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं एवं 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की फसल होती है। वर्तमान में प्रदेश में खाद्यान्न सरप्लस मात्रा में पैदा हो रहा है, किन्तु भविष्य में खाद्यान्न की किसी भी समस्या से निपटने हेतु फसल डाइवर्सिफिकेशन आवश्यक है। कृषक गण धान व गेहूँ के विकल्प के रूप में मक्का की फसल ले सकते हैं। मक्का की फसल की विशेषता यह है कि वह तीनों सीजन में होती है। मक्का का प्रयोग वर्तमान में खाने के अतिरिक्त एथेनॉल उत्पादन में भी किया जा रहा है। साथ ही उनके द्वारा कृषकों को अवगत कराया गया कि मक्का से एथेनॉल हेतु स्टार्च ग्रहण करने के उपरान्त अवशेष भी पशु आहार के रूप में एक अच्छे, पौष्टिक तत्व के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। प्रमुख सचिव ने कृषकों से आह्वान किया कि उन्हें पराम्परागत विधियों से हटकर नवोन्मेशी विधियों को अपनाना चाहिए।
कृषि निदेशक, उ0प्र0 ने सभी गणमान्यों द्वारा प्रदत्त निर्देशों एवं जानकारियों को सभी मण्डलीय एवं जनपदीय अधिकारियों द्वारा अमल में लाने हेतु निर्देश दिये एवं इस प्रकार की कार्यशाला को अत्यंत उपयोगी बताया। कार्यशाला में किसानों की समस्याओं का मौके पर ही समाधान किया गया। अपर कृषि निदेशक (गेहूँ एवं मोटा अनाज), उ0प्र0 द्वारा सभी उपस्थित प्रतिभागियों को ’त्वरित मक्का विकास कार्यक्रम“ योजना के बारे में जानकारी दी गई। कार्यशाला में आये हुए कृषि वैज्ञानिक डॉ० के. एम. सिंह, डॉ० एस.बी. सिंह, डा0 एस. के. शुक्ला, डॉ० स्वाती दीपक दुबे, डॉ० के. के. सिंह, शुभेन्दु दास तथा ऋषि पाठक द्वारा कार्यशाला में अपने-अपने विचार व्यक्त किये गये।
इस अवसर पर जगदीश कुमार, अपर कृषि निदेशक, महानिदेशक कृषि अनुसंधान परिषद, प्रबन्ध निदेशक, बीज विकास निगम, निदेशक, बीज प्रमाणीकरण, निदेशक, राज्य कृषि प्रबन्ध संस्थान, आई०आई०एम०आर० लुधियाना एवं बेगूसराय के प्रधान वैज्ञानिक एवं अन्य कृषि विश्वविद्यालय से आये हुए वैज्ञानिकगण, यू०पी० डिस्टलरीज एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं पदाधिकारी, वाइस प्रेसीडेन्ट, एक्सेस डेवलपमेंट सर्विसेज तथा समस्त मण्डलीय संयुक्त कृषि निदेशक व नामित जनपदीय उप कृषि निदेशक, जिला कृषि अधिकारी व कृषकों द्वारा कार्यशाला में प्रतिभाग किया गया।
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