
आखरी सांस तो हम सबकी ही मुकर्रर है गुरु, लेकिन मौत कुछ और है, कुछ और है यूं मर जाना
दया शंकर चौधरी
जो डॉक्टर बनने का सपना संजोए हॉस्टल में भोजन पा रहे थे, मेज़ पर रखी प्लेट और थाली में अन्नपूर्णा, गिलास में भरा हुआ पानी बता रहा है कि उन्होंने ज़िंदगी में ऐसे भयावह पल की कल्पना भी नहीं की होगी।
कोई खा चुका होगा और कोई रोटी, दाल सब्जी मांग रहा होगा तभी सैकड़ों की संख्या में सवार यात्रियों की मौत हवा में उड़ती दीवार तोड़ती उनकी थाली में समा गई।
हवाई सवार सभी यात्री जब हवा में उड़े होंगे तो न जाने क्या क्या सपने संजोये होंगे। कोई घूमने जा रहा था, कोई बेटी से मिलने और कोई तो कोई अपनी मातृभूमि वापस जा रहा था।
ऐसे में उनकी परिवारों को मिला ये दुःखद समाचार उनके हौंसले तोड़ देता है। घुट घुटकर वही रोता है जो अपनों को खोता है।
सभी मृतक आत्माओं को प्रभु अपने श्री चरणों में स्थान दें और इस वेदना जी रहे परिवारों को ऐसी पीड़ा सहने की शक्ति दें।
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