
भगवान राम के परम शत्रु दशानन रावण का मंदिर, जन्म स्थान और महिमा
दया शंकर चौधरी
ज्योतिष पंचांग के अनुसार, इस बार दशमी तिथि 1 अक्टूबर 2025 को शाम 07:02 बजे प्रारंभ होगी और इसका समापन 2 अक्टूबर 2025 को शाम 07:10 बजे होगा. यानी विजयादशमी का पर्व गुरुवार, 2 अक्टूबर को मनाया जाएगा। ऐसे में आइये समझते हैं भगवान राम के परम शत्रु दशानन रावण की महिमा के साथ उनके जन्म स्थान और भारत में उनके मंदिरों के बारे में । दशानन रावण का मंदिर मुख्य रूप से कानपुर, उत्तर प्रदेश के शिवाला क्षेत्र में स्थित है, जो साल में केवल एक बार दशहरे के दिन ही खुलता है। जब रावण की बुद्धि और ज्ञान की पूजा की जाती है। इसके अतिरिक्त, ग्रेटर नोएडा के पास बिसरख गांव को रावण का जन्मस्थान माना जाता है और वहां भी एक भव्य मंदिर है। मध्य प्रदेश के विदिशा में रावण ग्राम में भी रावण की एक लेटी हुई प्रतिमा वाला मंदिर है, जहां उन्हें दामाद के रूप में पूजा जाता है।
कानपुर का दशानन मंदिर
उत्तर प्रदेश कानपुर स्थित शिवाला क्षेत्र में दशानन मंदिर है।
विशेषता: यह मंदिर साल में केवल एक बार, दशहरा के दिन खुलता है।
परंपरा: इस दिन रावण का जलाभिषेक कर विशेष श्रृंगार किया जाता है और उनके ज्ञान, बल और बुद्धिमत्ता की पूजा की जाती है।
स्थापना: इस मंदिर की स्थापना 1868 में महाराज गुरु प्रसाद ने की थी।
रावण का जन्म स्थान: भगवान श्रीराम के जन्म स्थान अयोध्या से 697 किलोमीटर दूर बिसरख, ग्रेटर नोएडा उत्तर प्रदेश में रावण का जन्मस्थान माना जाता है।
विदिशा (मध्य प्रदेश): विदिशा के पास रावणग्राम गांव में रावण की 10 फुट लंबी लेटी हुई प्रतिमा वाला मंदिर है। विदिशा में रावण को दामाद के रूप में पूजा जाता है, क्योंकि यहां से रावण की पत्नी मंदोदरी का संबंध बताया जाता है।
मंदिरों में रावण की पूजा का महत्व
* कानपुर में भक्त रावण की बुद्धि और विद्वत्ता का सम्मान करने और ज्ञान प्राप्ति की कामना से पूजा करते हैं।
* बिसरख में रावण को शिव का भक्त और ब्राह्मण के रूप में देखा जाता है।
दशानन रावण की महिमा
दशानन रावण की महिमा अपार ज्ञान, शक्ति और तपस्या में निहित थी, जो उन्हें एक महान विद्वान, कुशल राजनीतिज्ञ, शक्तिशाली योद्धा और शिव भक्त बनाती थी। उनके दस सिर अहंकार, वासनाओं और आंतरिक संघर्षों का प्रतीक थे, जिन्हें उन्होंने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या के दौरान काट कर शिव को समर्पित की बात कही थी। उन्होंने लंका पर शासन किया और उसे 'स्वर्ण नगरी' बनाया, लेकिन अंततः उनका अहंकार ही उनके पतन का कारण बना।
विद्वान और पांडित्य: रावण एक प्रकांड विद्वान, पण्डित और शास्त्रों के ज्ञाता थे।
शिव भक्त: वे भगवान शिव के परम भक्त थे और उन्होंने शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी।
आसुरी माया: उनके दस सिर आसुरी माया से बने थे और आवश्यकतानुसार ये उत्पन्न होते रहते थे।
लंकाधिपति: रावण लंका का राजा था, जहाँ उसके शासन काल में लंका का वैभव अपने चरम पर था.
सोने की लंका: रावण ने अपना महल पूरी तरह सोने से बनवाया था, इसलिए लंका को 'स्वर्ण नगरी' भी कहा जाता है।
वरदान और शक्तियाँ: उन्होंने ब्रह्मा से अजेयता का वरदान पाया था (मनुष्यों को छोड़कर), तथा उन्हें ब्रह्मा से हथियार, रथ और रूप बदलने की क्षमता भी मिली थी।
दस सिरों का अर्थ: उनके दस सिर ज्ञान, इच्छाओं, शक्तियों, आंतरिक संघर्षों और दस प्रमुख वासनाओं जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, द्वेष आदि का प्रतिनिधित्व करते थे।
अहंकार और पतन: रावण की शक्ति और अहंकार उसके पतन का कारण बने, जिसके कारण देवता ब्रह्मा के पास गए और भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया।
विवाह और परिवार: रावण का विवाह मन्दोदरी से हुआ था।
पुष्पक विमान: उन्होंने अपने भाई कुबेर से बलपूर्वक पुष्पक विमान प्राप्त किया था, जिसका उपयोग वह सीता को लंका ले जाने के लिए किया था।
परम शत्रु: रावण भगवान श्रीराम के परम शत्रु थे और रामायण में वे नायक के साथ एक सशक्त खलनायक के रूप में भी चित्रित किए गए हैं।
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