
उसने मछली की आँख पर निशाना साधा और बन गया वैज्ञानिक
दया शंकर चौधरी
...क्या आप जानते हैं वह लड़का कौन था जिसे मोदी जी ने सराहा और DRDO में नौकरी दी..? आइये शुरू करते हैं महाभारत के तीरंदाज अर्जुन की तरह मछली की आँख पर निशाना साधने वाले आधुनिक तीरंदाज की...! उसका नाम प्रताप है, वह सिर्फ 21 साल का है। वह कर्नाटक के मैसूर के पास कडैकुडी गांव का रहने वाला है। उसके पिता एक साधारण किसान हैं।
वह एक गरीब छात्र था। वह बचपन से ही अपनी कक्षा में प्रथम आता था, लेकिन अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया। स्कूल की छुट्टियों में वह 100-150 रुपये कमाकर पास के इंटरनेट सेंटर में जाता और ISRO, NASA, BOEING, ROLLS ROYCE, HOWITZER आदि के बारे में रिसर्च करता और वहां के वैज्ञानिकों को ई-मेल भेजता। बावजूद इसके, उसे कभी कोई जवाब नहीं मिला, लेकिन उसने हार नहीं मानी और न ही उम्मीद छोड़ी।
उसे इलेक्ट्रॉनिक्स से बहुत प्रेम था। उसका सपना इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियरिंग करने का था, लेकिन गरीबी के कारण उसे बी.एससी (फिजिक्स) में दाखिला लेना पड़ा। फिर भी वह निराश नहीं हुआ। होस्टल की फीस न दे पाने के कारण उसे बाहर कर दिया गया। वह बसों में रात गुजारता, सार्वजनिक शौचालयों में काम करता और एक दोस्त की मदद से C++, Java, Python आदि सीखता।
वह अपने दोस्तों और ऑफिसों से ई-वेस्ट के रूप में कीबोर्ड, माउस, मदरबोर्ड और अन्य कंप्यूटर उपकरण इकट्ठा करता और उन पर रिसर्च करता। वह मैसूर की इलेक्ट्रॉनिक कंपनियों में जाकर ई-वेस्ट के रूप में सामान इकट्ठा करता और एक ड्रोन बनाने की कोशिश करता।
वह दिन में पढ़ाई और काम करता और रात में प्रयोग करता। करीब 80 प्रयासों के बाद उसका बनाया ड्रोन हवा में उड़ गया....। यह देखकर वह दंग रह गया और एक घंटे तक खुशी से रोता रहा।
अब उसके जीवन का नया अध्याय शुरू हो चुका था। ड्रोन की सफलता की खबर से वह अपने दोस्तों के बीच हीरो बन गया था। उसके पास अभी भी कई ड्रोन मॉडल की योजनाएँ हैं।
इसी बीच, उसने सुना कि दिल्ली में ड्रोन प्रतियोगिता होने वाली है। उसने मेहनत मजदूरी करके 2000 रुपये जमा कर लिए और दिल्ली की ओर एक जनरल डिब्बे में बैठकर रवाना हुआ। उस प्रतियोगिता में उसने दूसरा पुरस्कार जीता और इसी के साथ उसे जापान में होने वाली वर्ल्ड ड्रोन प्रतियोगिता में भाग लेने का अवसर भी मिला। उसकी आँखों में खुशी के आँसू थे और वह फिर से एक घंटे तक खुशी के मारे रोता रहा।
जापान जाना उसके लिए लाखों रुपये का खर्च था और किसी की सिफारिश भी जरूरी थी। तभी एक दोस्त ने चेन्नई के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसर से सिफारिश करवाई।
जबकि मैसूर के एक बडे आदमी ने फ्लाइट टिकट का खर्च उठाया। बाकी खर्चों के लिए उसकी मां ने अपनी मंगलसूत्र और 60,000 रुपये उसे दे दिए।
वह बेंगलुरु के केम्पेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से फ्लाइट पकड़कर टोक्यो पहुंचा।
बुलेट ट्रेन का किराया तो उसके पास था नहीं, मजबूरन उसने जापान के 16 स्टेशनों पर सामान्य ट्रेन बदली और आखिरी स्टेशन पर उतर गया। वहां से वह 8 किलोमीटर पैदल चलकर अपने गंतव्य तक पहुंचा।
वहां सभी तरह के हाई-फाई लोग आए हुए थे।
सबसे आधुनिक ड्रोन वहां थे। ज्यादातर प्रतियोगी "बेंज" और "रोल्स-रॉयस" जैसी मंहगी गाड़ियों से आए थे। महाभारत की कथा में जैसे अर्जुन को सिर्फ पक्षी की आंख दिखती थी, वैसे ही प्रताप ने सिर्फ अपने ड्रोन पर ध्यान केन्द्रित कर दिया था। उसने अपने मॉडल प्रस्तुत किए और ड्रोन का प्रदर्शन किया। अब बारी थी रिजल्ट आने की। वहां के लोग बोले कि परिणाम कई स्टेप में घोषित होंगे, थोडा़ इंतजार करें। उस प्रतियोगिता में कुल 127 देशों ने भाग लिया था। घोषणाएं शुरू हुईं। किसी भी राउंड में प्रताप का नाम नहीं आया। वह निराश हो गया था और आंखों में आंसू लिए धीरे-धीरे गेट की ओर जाने लगा।
तभी आखिरी घोषणा हुई –“कृपया स्वागत कीजिए मिस्टर प्रताप का... भारत से..! प्रथम पुरस्कार...!" तुरंत उसने अपना सामान वहीं छोड़ दिया, जोर-जोर से रोता हुआ मंच पर पहुंचा, जब उसे कुछ बोलने के लिए कहा गया तो उसने अपने माता-पिता, शिक्षकों, दोस्तों और दानदाताओं का नाम लिया। उस प्रतियोगिता में अमेरिका के दूसरा स्थान वाला झंडा नीचे गया और भारत के प्रथम स्थान वाला झंडा ऊपर गया।
प्रताप थरथराते हाथ-पैर और पसीने से भीगे कपड़ों में मंच पर पहुंचा। उसे पहला पुरस्कार और 10,000 डॉलर (करीब 7 लाख रुपये) मिले। उसी समय तीसरा पुरस्कार जीतने वाले फ्रांसीसी लोग उसके पास आए। उन्होंने उसे कहा, “हम तुम्हें 16 लाख रुपये मासिक वेतन, पेरिस में प्लॉट और 2.5 करोड़ की कार देंगे, हमारे देश चलो....!"
प्रताप ने कहा–“मैंने यह सब पैसों के लिए नहीं किया। मेरा उद्देश्य अपने मातृभूमि की सेवा करना है...!” और वह उन्हें धन्यवाद देकर घर वापस लौट आया।
अब कहानी शुरू होती है भारत में उसकी कामयाबी के सफर की...। स्थानीय बीजेपी विधायक और सांसद को जब यह बात पता चली तो वह उसके घर आए, बधाई दी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने का मौका भी दिलवाया। मोदी जी ने उसकी उपलब्धियों के लिए बधाई दी और उसे DRDO में भेजा।
अब वह DRDO के ड्रोन विभाग में वैज्ञानिक नियुक्त किया गया है। वह महीने में 28 दिन विदेशों में यात्रा करता है और DRDO के लिए ड्रोन आपूर्ति के ऑर्डर लाता है..!
“अगर मेहनत तुम्हारा हथियार है, तो सफलता तुम्हारी गुलाम होगी..” हमारे युवा वैज्ञानिक प्रताप इस भारतीय कहावत का जीता-जागता प्रमाण हैं..!
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