
80 फीसदी दुर्लभ बीमारियां आनुवंशिक प्रकृति की होती हैं
लखनऊ। दुनिया में 80 फीसदी दुर्लभ बीमारियां आनुवंशिक प्रकृति की होती हैं। इसका मतलब है कि वे गुणसूत्रों या जीनों में दोषों के कारण होते हैं। इस समय दुनिया भर में 20-40 करोड़ लोग किसी एक दुर्लभ बीमारी के शिकार हैं। संजय गांधी पीजीआई का चिकित्सा आनुवंशिकी विभाग देश में इस तरह का पहला विभाग है जो 35 वर्षों से इन बीमारियों के लिए नैदानिक सेवाएं, प्रबंधन और रोकथाम प्रदान कर रहा है। इतना ही नहीं देश के अधिकांश चिकित्सा आनुवंशिकीविदों को प्रशिक्षित भी किया है।
यह जानकारी एसजीपीजीआई के आनुवंशिकी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. शुभा फड़के ने दी। उन्होंने बताया कि विभाग की ओर से शनिवार को इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के यूपी चैप्टर और लखनऊ एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के साथ दुर्लभ रोग दिवस - 2024 के अवसर पर दुर्लभ रोग से पीड़ित मरीज और देखभाल करने वाले डॉक्टरों के साथ एक कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है। जिसमें विशेषज्ञ दुर्लभ बीमारियों के प्रति जानकारी साझा करेंगे।
केंद्र सरकार की नीति रोगियों पर कारगर
डॉ. शुभा ने बताया कि भारत सरकार ने राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति-2021 लांच की है और पूरे देश में सात उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए। संजय गांधी पीजीआई उनमें से एक है। उत्कृष्टता केंद्र के रूप में, सरकार ने दुर्लभ बीमारियों वाले रोगियों के इलाज के लिए संस्थान को शुरुआत में 6.4 करोड़ रुपये दिए गए थे।
इस नीति के तहत, गौचर रोग और स्पाइनल मस्कुलर रोग के रोगियों को अब मुफ्त इलाज मिल रहा है। कई अन्य बीमारियों से ग्रस्त रोगी जैसे विल्सन रोग, टायरोसिनेमिया, ग्रोथ हार्माेन की कमी, इम्यूनोडेफिशिएंसी विकार आदि के लिए जल्द ही मुफ्त दवाएं मिलनी शुरू हो जाएंगी। चिकित्सा आनुवंशिकी विभाग के पास आनुवंशिक विकारों के लिए अत्याधुनिक नैदानिक सुविधाएं हैं और यह आनुवंशिक परामर्श और प्रसव पूर्व निदान सेवाएं प्रदान करता है।
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