
सदर बाजार स्थित गुरुद्वारा साहिब में मनाया गया श्री गुरुनानक देव जी का ज्योति जोत (परिनिर्वाण) दिवस
दया शंकर चौधरी।
लखनऊ। सदर बाजार स्थित गुरुद्वारा में साहिब श्री गुरू नानक देव जी के ज्योति जोत (परिनिर्वाण) दिवस के अवसर पर मुख्य ग्रंथी ज्ञानी हरविंदर सिंह ने अपने प्रवचन में बताया कि सिख धर्म के प्रथम गुरू साहिब श्री गुरू नानक देव जी ने एक ओंकार का संदेश पुरी दुनिया को दिया। उनका ज्योति जोत दिवस वह दिन है जब उन्होंने अपनी नश्वर देह त्याग कर ईश्वर की अनंत जोत में विलीन हो गए। ज्ञानी हरविंदर सिंह ने बताया कि गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 में तलवंडी साहिब (अब ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में हुआ था। अपने जीवन भर उन्होंने मानवता, सेवा, सिमरन, कीरत, करनी, और वंड छकने का उपदेश दिया। 22 सितम्बर 1539 को करतारपुर साहिब (पंजाब, पाकिस्तान) में वे सचखंड में जोत स्वरूप समा गए। यही दिन गुरु नानक देव जी का "ज्योति जोत दिवस" के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि “ज्योति जोत समाना” का मतलब है इस नश्वर शरीर को त्याग कर आत्मा को परमात्मा की परम ज्योति में विलीन कर देना। ऐसा कहा जा सकता है कि गुरु साहिब कभी संसार से जाते नहीं, उनकी वाणी, उनकी शिक्षा और उनका प्रकाश आज भी मानव मात्र को राह दिखाता रहता है। सिख समाज इस दिन विश्व के सभी गुरुद्वारों में अखंड पाठ, कीर्तन दरबार और अरदास करता है। गुरु साहिब की शिक्षाओं को याद करते हुए मुख्य ग्रंथी ने कहा कि "इक ओंकार – ईश्वर एक है। नाम जपो – सदा प्रभु का स्मरण करो। कीरत करो – मेहनत और ईमानदारी से कार्य करो। वंड छको – दूसरों के साथ बाँटकर खाओ सभी मनुष्य बराबर हैं – न कोई छोटा है, न कोई बड़ा है। संगत यदि जीवन में इस तरह के विचार अपनाने का संकल्प लें तो पूरी दुनिया का कल्याण हो सकता है। दीवान की समाप्ति के उपरांत संगतों में गुरु का लंगर वितरित किया गया। इस अवसर पर कार्य क्रम की प्रबंध व्यस्था बडे ही सुन्दर ढंग से सरदार हरपाल सिंह जग्गी ने की।
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