
खुशखबरी! किसानों को बैल से खेती करने पर मिलेंगे 30 हजार रुपये
दया शंकर चौधरी
अब बैलों से खेती करने वाले किसानों को कृषि विभाग प्रति वर्ष 30 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि देगा और गोबर गैस प्लांट पर भी दी जाएगी सब्सिडी....। राजस्थान सरकार प्रकृति की ओर लौट रही है। अब फिर से खेतों में बैलों के घुंघरुओं की आवाज सुनाई देगी। राज्य सरकार ने इस बार (2025) के बजट में गौवंश को बढ़ावा देने के लिए बैलों से खेती करने वाले किसानों को 30 हजार रुपये प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की है। सरकार की इस पहल से बैलों के उपयोग को प्रोत्साहन मिलेगा और सीमांत किसानों को आर्थिक फायदा भी हो सकेगा।
प्राकृतिक तरीके से खेती को बढ़ावा देने की दिशा में राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा की मंशा पर कृषि विभाग ने कार्रवाई शुरू कर दी है। राज्य में बैलों से खेती करने वाले किसानों के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। किसान राज किसान साथी पोर्टल पर ई-मित्र के जरिए या फिर मोबाइल ऐप से ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।
कौन से किसान हैं पात्र?
इसके लिए किसान के पास एक जोड़ी बैल होना जरूरी है, जो कृषि काम में लिए जा रहे हैं। किसान के पास लघु या सीमांत किसान का तहसीलदार वाला प्रमाण पत्र होना चाहिए। बैलों का पशु बीमा जरूरी है। बैलों की उम्र 15 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। इस योजना में मंदिर भूमि के संरक्षक के रूप में पुजारी भी आवेदन कर सकेंगे। जनजातिय बाहुल्य क्षेत्रों में वनाधिकार पट्टे के आधार पर भी आवेदन किया जा सकेगा।
कैसे करें आवेदन?
ई-मित्र से अथवा खुद राज किसान साथी पोर्टल पर आवेदन कर सकते हैं। आवेदन के लिए आधार कार्ड, जन आधार कार्ड होना जरूरी है।
जमाबंदी की नकल जो कि 6 माह से अधिक पुरानी न हो, अपलोड होगी। वनाधिकार पट्टे की फोटो कॉपी भी अपलोड करनी होगी।
जमीन खुद के नाम न होने पर नेशनल शेयर धारक का प्रमाण पत्र दे सकेंगे। किसानों को बैलों की जोड़ी के साथ फोटो पोर्टल पर अपलोड किया जाएगा। बैलों की पशु बीमा पॉलिसी, स्वास्थ्य प्रमाण पत्र भी अपलोड किए जाएंगे। 100 रुपये नॉन ज्यूडिशियल स्टांप पर शपथ पत्र अपलोड करना भी जरूरी है।
किस तरह मिलेगा अनुदान?
ऑनलाइन आवेदन मिलने के बाद अधिकारी ऑनलाइन स्क्रूटनी करेंगे। पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर आवेदनों का निस्तारण किया जाएगा। पात्र आवेदनों की पत्रावलियों पर 10 दिन में प्रशासनिक मंजूरी देनी होगी।
उप जिलों को आवंटित लक्ष्य के अनुसार ही प्रशासनिक मंजूरी दी जाएगी। प्रशासनिक मंजूरी की सूचना किसान को भी मोबाइल पर भेजी जाएगी। बैलों से खेती का फिजिकल वेरिफिकेशन विभागीय अधिकारी, पटवारी द्वारा की जाएगी। सत्यापन के दौरान पशुपाल विभाग के कार्मिक भी मौजूद रहेंगे।
सत्यापन के बाद किसानों के लिए 30 हजार राशि की वित्तीय मंजूरी दी जाएगी।
...और अब 'दो बैलों की कथा'
'दो बैलों की कथा' मुंशी प्रेमचंद की एक प्रसिद्ध कहानी है। यह कहानी दो बैलों हीरा और मोती के इर्द-गिर्द घूमती है। आर्थिक तंगी के चलते किसान उन्हें साहूकार के पास गिरवी रख देता है। वहां यातनाओं का सामना करने के बाद दोनो बैल मिलकर साहूकार के घर से भाग जाते हैं। इस कहानी से यह संदेश मिलता है कि स्वतंत्रता सबका अधिकार है और उसे बनाए रखना सबका कर्तव्य है।
भारतीय फिल्मों में भी किया गया है दो बैलों का चित्रण
देश प्रेम और देश के लिए कुछ कर गुज़रने का जज़्बा हर नागरिक में होता है। हिंदी सिनेमा ने भी इस मोहब्बत और जज़्बे को बख़ूबी अभिव्यक्त किया है। आज भी देशभक्ति के कई ऐसे गाने हैं, जो लोकप्रिय हैं। बदलते वक़्त के साथ इनकी लोकप्रियता में इज़ाफ़ा भी हुआ है। कुछ ऐसे बेशक़ीमती गीत हैं जो हर नागरिक को वतन के प्रति अपनी मोहब्बत का इज़हार करने के लिए अल्फ़ाज़ देते हैं।
किसान, बैल और लोकप्रिय देशभक्ति गीत
* 'मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती...
यह गाना 1967 में आई फ़िल्म "उपकार" का है। दिवंगत अभिनेता मनोज कुमार ने यह फ़िल्म पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नारे 'जय जवान जय किसान' को केंद्र में रखकर बनाई थी। इस गीत को क़लमबंद किया है जाने-माने गीतकार इन्दीवर ने। महेन्द्र कपूर ने अपनी दिलकश आवाज़ से इस गीत को अमर कर दिया। गीत को संगीत से सजाया है मशहूर संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी ने। मनोज कुमार को जिन चुनिंदा फ़िल्मों की वजह से भारत कुमार कहा जाता था, उनमें "उपकार" भी थी। मनोज कुमार ने इस फ़िल्म को ख़ुद लिखा, अभिनय किया और डायरेक्ट भी किया। इस गीत को बहुत ही खूबसूरती से फ़िल्माया गया है।
गीत के बोल हैं
'मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती...
बैलों के गले में जब घुंघरू जीवन का राग सुनाते हैं...
ग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुस्काते हैं...
सुनके रहट की आवाज़ें यूं लगे कहीं शहनाई बजे...
आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे...
मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती...
जब चलते हैं इस धरती पे हल, ममता अंगड़ाइयाँ लेती है...
क्यूं ना पूजे इस माटी को जो जीवन का सुख देती है...
इस धरती पे जिसने जनम लिया, उसने ही पाया प्यार तेरा...
यहां अपना पराया कोई नहीं, है सब पे है मां उपकार तेरा...
मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती...
ये बाग़ है गौतम, नानक का खिलते हैं चमन के फूल यहां..
गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक, ऐसे हैं अमन के फूल यहां...
रंग हरा हरी सिंह नलवे से रंग लाल है लाल बहादुर से...
रंग बना बसंती भगत सिंह रंग अमन का वीर जवाहर से...
मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती...
सड़कों पर आवारा पशुओं (बैलों) का कहर
दूसरी ओर नेशनल हाईवे पर आवारा पशुओं (बैलों) की समस्या गंभीर रूप धारण कर रही है। पिछले दिनों सीतापुर में महोली क्षेत्र के उरदौली कस्बे में हाईवे पर एक बैल खड़ा और एक बछड़ा बैठा हुआ देखा गया, जो किसी बड़े हादसे को न्योता दे रहा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ट्रक चालक विनोद वर्मा ने बताया कि आवारा पशुओं की वजह से अक्सर हादसे होते हैं। बस चालक इरफान ने इस समस्या के समाधान की मांग की है।स्थानीय पान की दुकान के संचालक पंडित जी के अनुसार, यह समस्या रोजाना की है। आवारा पशु लगातार हाईवे पर बैठे रहते हैं। यह स्थिति यात्रियों और वाहन चालकों के लिए खतरनाक साबित हो रही है। प्रशासन से मांग की जा रही है कि वह इस समस्या का जल्द समाधान करे और आवारा पशुओं को सड़कों से हटाने की व्यवस्था करे। इससे न केवल यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि पशुओं की भी सुरक्षा हो सकेगी।
जब दो बैलों की जोड़ी था कांग्रेस का चुनाव चिन्ह
बड़ी दिलचस्प है चुनाव चिन्हों की कहानी, जनता के बीच निशान को यादगार बनाने के लिए अनोखेे अंदाज में होता था प्रचार....।
आपको बताते चलें कि राई विधानसभा क्षेत्र के बढ़खालसा गांव में जन्मे स्व. रिजकराम दहिया ने राजनीति कैरियर की फिफ्टी लगाई। वकालत के पेशे से होते हुए 1952 में संयुक्त पंजाब में पहली बार राई सीट से विधायक बने। 1957 का इलेक्शन हुकुम सिंह से हार गए। 1962, 1967, 1972, 1977 में फिर विधायक बने। 1969 में राज्यसभा सदस्य बने, 1996 में सांसद का चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी अरविंद शर्मा से हार गए। इसके बाद राजनीति से दूर हो गए। अब इनके बेटे जयतीर्थ दहिया लगातार दो बार विधायक बने हैं। जयतीर्थ ने अपने पिता की यादों और उस दौर को सांझा करते हुए कहा है कि आजादी के बाद पहले चुनाव में कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी था। प्रचार में बैल लेकर जाते थे। बैल भीड़ में बिदक न जाए इसलिए किसानों की ड्यूटी लगाई जाती थी। 1952 में संयुक्त पंजाब में विधानसभा चुनाव लड़ने वाले कई कांग्रेस उम्मीदवारों ने बैलों व बैलगाड़ी से चुनाव प्रचार किया। वकील रहे पिता रिजकराम पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने हिंदी भाषी चंडीगढ़ पंजाब को दिए जाने के विरोध में राज्यसभा सांसद से इस्तीफा दे दिया था। नेताओं के किसी मामले में फंसने पर इस्तीफे तो हो जाते हैं, लेकिन जनहित के मुद्दे पर इस्तीफा देना संभवत: नहीं दिखता। 1967 में सीए बनाने की उठापटक के बाद कांग्रेस नाराज हुई। पं. भगवतदयाल और रिजकराम को 1968 में टिकट नहीं मिली। बाद में 1969 में इन्हें राज्यसभा सदस्य बनाया गया। 1952 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिह्न ‘दो बैलों की जोड़ी’ था तो भारतीय जनसंघ का ‘दीपक’ और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का ‘झोपड़ी’। फिर कांग्रेस का ‘पंजा’ हो गया तो जनसंघ से भाजपा बनने के बाद चुनाव चिह्न ‘कमल’ हो गया। कांग्रेस ने पहला चुनाव इसी चिह्न पर जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई में लड़ा था और सरकार बनाई थी। 1970-71 में कांग्रेस में विभाजन हुआ। पार्टी से अलग हुए मोरारजी देसाई, चंद्रभानू गुप्ता ने संगठन कांग्रेस बनाई। विभाजन होते ही चुनाव चिह्न ‘दो बैलों की जोड़ी’ विवादित हो गया सो चुनाव आयोग ने उसे सीज कर दिया। 1952 में कांग्रेस से दो बैलों की जोड़ी निशान पर बैलगाड़ी लेकर राई क्षेत्र से रिजकराम ने भी प्रचार कर चुनाव जीता था। चिन्ह सीज होने के बाद इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस को चुनाव चिह्न ‘गाय और बछड़ा’ मिला जबकि संगठन कांग्रेस को ‘चरखा’ चुनाव चिह्न मिला।
दीपक निशान वाला जनसंघ भाजपा में बदला तो मिला कमल वर्ष 1977 के चुनाव में ही ‘दीपक’ चिह्न वाले जनसंघ, ‘झोपड़ी’ चुनाव निशान वाली प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाले भारतीय क्रांति दल का विलय हुआ और जनता पार्टी बनी, जिसे चुनाव चिह्न मिला ‘कंधे पर हल लिए हुए किसान’। वर्ष 1979 में कांग्रेस में एक और विभाजन हुआ और उसे चुनाव चिह्न मिला ‘हाथ का पंजा’। इसी बीच जनता पार्टी भी बिखर गई और पूर्ववर्ती जनसंघ के नेताओं ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया, जिसे चुनाव चिह्न मिला ‘कमल का फूल’। चौधरी चरण सिंह की अगुवाई वाली लोकदल को ‘खेत जोतता हुआ किसान’ चुनाव चिह्न मिला।
बैलों को दरकिनार करने वाले ट्रैक्टर की कहानी
ऐसा माना जाता है कि भारत में ट्रैक्टर की शुरुआत 24 अप्रैल, 1959 को हुई थी। इस दिन "आयशर" ने अपने फ़रीदाबाद कारखाने से पहला स्थानीय रूप से असेंबल किया हुआ ट्रैक्टर निकाला था। 1965 से 1974 के बीच भारत में पहला पूरी तरह से स्वदेशी ट्रैक्टर बना।
भारत में ट्रैक्टरों के बारे में कुछ और खास बातें
भारत में ट्रैक्टरों का इस्तेमाल करने की शुरुआत आज़ादी के बाद 'हरित क्रांति' से हुई थी। 1940 के दशक के मध्य में युद्धों के दौरान भारत में सबसे पहले ट्रैक्टर खरीदे गए थे।1960 के दशक में आयशर ट्रैक्टर, टैफ़े, एस्कॉर्ट्स, एमएंडएम जैसी कंपनियां अस्तित्व में आईं। 1972 में एचएमटी ने भारत में ट्रैक्टरों का निर्माण शुरू किया। 1998 में न्यू हॉलैंड ट्रैक्टर्स भारत आया।
दुनिया का पहला ट्रैक्टर
सबसे पहले शक्ति-चालित कृषि उपकरण 19वीं शताब्दी के आरंभ में आए थे। इनके पहियों पर एक भाप का इंजन हुआ करता था।
साल 1892 में जान फ़्रोलिक ने पहला पेट्रोल चालित ट्रैक्टर बनाया था।
दुनिया का पहला ट्रैक्टर कब बना था और भारत में पहला ट्रैक्टर कब आया? याद है ...।
सबसे पहले शक्ति-चालित कृषि उपकरण 19वीं शताब्दी के आरम्भ में आए थे। जिनके पहिओं पर एक भाप का इंजन हुआ करता था।जो बेल्ट की सहायता से कृषि उपकरण को चलाता था। पहले भाप इंजन का आविष्कार 1812 में रिचर्ड ट्रेविथिक ने किया था...।
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