
पसमांदा मुस्लिम समाज ने की भारत निर्वाचन आयोग का नाम बदलने की मांग
दया शंकर चौधरी
निर्वाचन आयोग का नाम 'स्वर्गीय टी.एन. शेषन निर्वाचन आयोग' रखा जाए–अनीस मंसूरी की मांग
पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा – संस्था को सत्ता नहीं, संविधान के प्रति जवाबदेह बनाना ज़रूरी
लखनऊ। पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री अनीस मंसूरी ने भारत निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए एक महत्वपूर्ण और विचारोत्तेजक मांग की है – "निर्वाचन आयोग का नाम बदलकर 'स्वर्गीय टी.एन. शेषन निर्वाचन आयोग' रखा जाए, ताकि यह संस्था अपने मूल दायित्व और आदर्श की ओर लौट सके।"
अनीस मंसूरी ने कहा कि टी.एन. शेषन भारतीय लोकतंत्र की एक जीवंत मिसाल थे, जिन्होंने निर्वाचन आयोग को सत्ता के प्रभाव से बाहर निकालकर संविधान का प्रहरी बनाया। "आज जब आयोग पर निष्पक्षता को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं, ऐसे समय में शेषन साहब जैसे आदर्श की याद और ज़्यादा ज़रूरी हो गई है।"
"नाम बदलाव केवल प्रतीक नहीं, संदेश होगा"
उन्होंने स्पष्ट किया कि यह नाम परिवर्तन केवल प्रतीकात्मक नहीं होगा, बल्कि हर अधिकारी और कर्मचारी को यह सतत स्मरण कराएगा कि वह संस्था सत्ता की नहीं, जनता और संविधान की सेवा में है। "जब आयोग के नाम के साथ शेषन साहब का नाम जुड़ा होगा, तो यह हर फैसले को संविधान की कसौटी पर कसने की नैतिक ज़िम्मेदारी देगा," मंसूरी ने कहा।
निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल
अनीस मंसूरी ने आरोप लगाया कि हाल के वर्षों में आयोग की स्वतंत्रता कमज़ोर हुई है। वोटर लिस्ट से नामों की रहस्यमयी कटौती, चुनावों में तकनीकी पारदर्शिता की कमी और अधिकारियों की नियुक्ति व ट्रांसफर की अपारदर्शिता इस ओर इशारा करती है कि संस्था अब सत्ता के दबाव में काम कर रही है।
मुख्य माँगें
* निर्वाचन आयोग का नाम ‘स्वर्गीय टी.एन. शेषन निर्वाचन आयोग’ रखा जाए।
* मतदाता सूची की स्वतंत्र न्यायिक जांच कराई जाए।
* आयोग की जवाबदेही तय करने के लिए संसदीय समिति का गठन हो।
* चुनावों में उपयोग हो रही तकनीकों (EVM, सी-विजिल, हेल्पलाइन आदि) की पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।
* आयोग के सभी अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले की प्रक्रिया को सार्वजनिक व निष्पक्ष बनाया जाए।
"लोकतंत्र की आत्मा को बचाना होगा"
मंसूरी ने कहा, "चुनाव आयोग पर जनता का विश्वास अगर डगमगाया, तो यह केवल एक संस्था का संकट नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा पर चोट होगी।" उन्होंने यह भी कहा कि पसमांदा मुस्लिम समाज इस विषय पर चुप नहीं बैठेगा और आवश्यकता पड़ी तो यह मामला राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट तक ले जाएगा।
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