विवेकानंद पॉलीक्लिनिक व डॉक्टरों पर 61 लाख हर्जाना
- एमबीए की छात्रा स्वाती रस्तोगी की मौत के मामले में उपभोक्ता आयोग ने सुनाया फैसला
- 22 अक्टूबर 2013 को डेंगू से पीड़ित मरीज अस्पताल के इमरजेंसी में हुई थी भर्ती
- डॉ जावेद अहमद के अंडर में भर्ती हुई थी मरीज
- सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल का हाल: रात में बंद थी प्रयोगशालाएं
लखनऊ। डेंगू से पीड़ित एमबीए प्रथम वर्ष की छात्रा को उचित इलाज ने मिलने पर उसकी मौत हो गई। परिजन उसे विवेकानन्द पॉलीक्लीनिक एण्ड इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साईंसेज के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया था। 22 अक्टूबर 2013 को हुई एमबीए छात्रा की मौत के बाद परिजानों ने डॉक्टर और अस्पताल पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए उपभोक्ता आयोग में इसकी शिकायत की। 10 साल से भी अधिक समय तक चले इस मुकदमें में आयोग ने अस्पताल और वहां डॉक्टरों के डाक्टरों को दोषी करार दिया है। आयोग ने अपने फैसले में पीड़ित परिवार के पक्ष में 61 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्णय सुनाया। यह धनराशि 12 प्रतिशत ब्याज सहित 30 में भुगतान करना होगा। तय समय पर भुगतान न हुआ तो ब्याज की दर 15 प्रतिशत होगी।
344/376, मोहल्ला-रंगमहला, सोनारों वाली गली, जिला-शाहजहॉंपुर की रहने वाली महेश चन्द्र रस्तोगी की बेटी स्वाती रस्तोगी (20) एमबीए प्रथम की छात्रा थी। 18 अक्टूबर 2013 को उसे जाड़ा लगकर बुखार आया। एक डॉक्टर से दवा लेकर उसने अपना खून जांच पैथ लैब में कराया। उसकी प्लेटलेट्स की संख्या 1.18 लाख थी। बुखार में कोई सुधार न होने पर 22 अक्टूबर को उसे चौक स्थित डॉ. मुकेश भगत को दिखाया गया। पुनः खून की जांच हुई तो प्लेटलेट्स 97000 मिला। उसी रात स्वाती को विवेकानंद पॉलीक्लिनिक एण्ड इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के आकस्मिक चिकित्सा विभाग में लाया गया। जहां डॉ. प्रदीप गुप्ता ड्यूटी पर थे। उसे जिस बेड पर भर्ती किया गया वह बेड डॉ. जावेद अहमद का था। रात 8 बजे डॉ. प्रदीप की ड्यूटी खत्म हो गई। उनके स्थान पर डॉ. जिज्ञासू सिंह आये। रात 9 बजे मरीज की आंखें टेढ़ी होने लगी और शरीर ऐंठने लगा। रात 11.30 बजे डॉ. जावेद अहमद मरीज को देखने पहली बार पहुंचे। उन्होंने मरीज के खून की जांच और सीटी स्कैन के लिए लिखा लेकिन अस्पताल की प्रयोगशाला सुबह 8.30 बजे खुलेगा बताया गया। जिसके कारण यह आवश्यक जांचे नहीं हो सकी। स्वाती रस्तोगी की हालत बिगड़ती गई और अंतः उसकी मृत्यु हो गयी। इस मामले में पीड़ित परिवार ने राज्य उपभोक्ता आयोग में एक वाद दायर किया। जिसकी सुनवाई आयोग के सदस्य राजेन्द्र सिंह एवं विकास सक्सेना कर रहे थे।
आयोग के प्रीसाइडिंग जज राजेन्द्र सिंह ने इस मामले में अपने 135 पेज के निर्णय में सभी तथ्यों पर विचार करते हुए लिखा कि मरीज स्वाती रस्तोगी रात 7.30 बजे विवेकानंद पालीक्लिनिक पहुँची थी। लेकिन चार घंटा बीत जाने के बाद भी जिस चिकित्सक के अंडर में वह भर्ती हुई वह डॉक्टर उसे देखने तक नहीं आया। फोन पर ही दूसरे डॉक्टरों को एडवाइस देता रहा। जबकि यह अस्पताल अपने को सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल कहता है। आयोग ने कहा कि डॉ. जावेद अहमद का दायित्व था कि वह तुरन्त आते क्योंकि रोगी की हालत अत्यंत खराब थी। आयोग ने कहा कि अस्पताल में इमरजेंसी होने पर प्रयोगशालाएं न खोलना अपने आप में चिकित्सकीय उपेक्षा का उदाहरण है। मरीज स्वाति की मृत्यु का कारण ‘‘डेंगू शॉक सिंड्रोम कार्डियो रेस्पिरेटरी अरेस्ट‘‘ दिखाया गया। प्लेटलेट्स 55000 होते हुए मृत्यु होना संदेह पैदा करता है कि क्या फेनारगन इंजेक्शन के दुष्प्रभाव से मृत्यु हुई या अन्य किसी कारण से। फिनारगन इंजेक्शन डॉक्टर की निगरानी में ही दिया जाता है और कोई भी दुष्प्रभाव होने पर एन्टीडोज दी जाती है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इण्डिया के हस्तक्षेप के पर अस्पताल प्रशासन ने स्वाती के सम्बन्धित समस्त इलाज के पर्चे व रिपोर्ट दी। मेडिकल काउंसिल ने स्पष्ट रूप से यह भी कहा है कि यदि कोई रोगी चिकित्सीय अभिलेख मांगता है तो उसे 72 घण्टे के अन्दर उपलब्ध कराने चाहिए। आयोग ने अस्पताल और डॉक्टरों की लापरवाही मानते हुए मानसिक, शारीरिक यंत्रणा व आर्थिक क्षति के मद में 50 लाख, वाद व्यय के मद में 1 लाख, और चिकित्सीय उपेक्षा और सेवा में कमी के मद में 10 लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है।
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